यह कहानी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव की है, जहाँ एक पुरानी हवेली वर्षों से वीरान पड़ी थी। लोग कहते थे कि वहां कुछ अजीब घटनाएँ होती हैं। रात को रोशनी दिखती, दरवाज़े खुद-ब-खुद खुलते-बंद होते, और कई बार बच्चों के रोने की आवाज़ें आती थीं।
गाँव का कोई भी व्यक्ति उस हवेली के पास रात को नहीं जाता था। लेकिन 2018 में शहर से आए एक शोधकर्ता राहुल ने इस हवेली के रहस्य को जानने का निश्चय किया। गाँव वालों ने उसे बहुत मना किया, पर वह नहीं माना। उसके पास कैमरा, टॉर्च और रिकॉर्डिंग उपकरण थे। वह रात 11 बजे हवेली में घुसा।
हवेली के अंदर घुसते ही उसे अजीब-सा सन्नाटा महसूस हुआ। दीवारों पर खून के धब्बे जैसे निशान थे और कोनों में मकड़ियाँ जाले बुन चुकी थीं। अचानक उसे एक कोठरी दिखी, जिसका दरवाज़ा आधा खुला था। उसने भीतर झाँका तो वहाँ एक पुरानी लकड़ी की पालकी रखी थी। पास ही कुछ बच्चों की तस्वीरें फटी हुई हालत में थीं।
राहुल ने कैमरा ऑन किया और रिकॉर्डिंग शुरू की। तभी हवा का एक झोंका आया और दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। राहुल डर गया, लेकिन हिम्मत करके उसने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की — पर दरवाज़ा अंदर से बंद हो चुका था। तभी उसे एक बच्चे की धीमी सी आवाज़ सुनाई दी:
“तुम भी अब यहीं रह जाओगे…”
राहुल ने टॉर्च घुमाई, पर कोई नज़र नहीं आया। वह पसीने से भीग गया था। अचानक पालकी अपने आप हिलने लगी। फिर एक झटके में वह बंद कोठरी की एक दीवार गिर गई, और उसके पीछे एक सुरंग दिखाई दी। राहुल ने जैसे ही उस सुरंग की तरफ कदम बढ़ाया, किसी ने उसका हाथ ज़ोर से पकड़ा। वह पलटा तो देखा – एक 8-9 साल की बच्ची खून से सनी सफेद फ्रॉक में खड़ी थी। उसकी आँखें पूरी तरह काली थीं।
वह बच्ची बोली, “मैं यहाँ पिछले 70 सालों से बंद हूँ… अब तुम्हारी बारी है…”
इसके बाद राहुल के चीखने की आवाज़ आई और फिर सब कुछ शांत हो गया।
अगले दिन गाँव वाले जब हवेली पहुंचे तो राहुल का कोई पता नहीं चला। कैमरा ज़मीन पर टूटा पड़ा था और उस पर आखिरी रिकॉर्डिंग वही थी – जिसमें वो बच्ची राहुल की तरफ बढ़ती दिख रही थी। आज भी वो हवेली बंद है, और लोग कहते हैं कि अगर किसी को बच्चों की हँसी या रोने की आवाज़ सुनाई दे, तो समझ लेना चाहिए कि “कोठरी का रहस्य” अभी खत्म नहीं हुआ…