Horror Story

श्मशान रोड की रहस्यपूर्ण रात

—✒️लक्ष्मी जायसवाल

मुंबई शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर एक गाँव है देवखोरी। यह गाँव तो शांत और सुंदर था, लेकिन इसके ठीक पीछे एक पुराना श्मशान घाट है, जो गाँव वालों के लिए आज भी डर का पर्याय है। इस श्मशान से होकर एक संकरी सड़क जाती है, जिसे लोग “श्मशान रोड” कहते हैं। गाँव के बड़े-बुज़ुर्गों ने कई बार चेताया है “सूरज ढलने के बाद उस सड़क से मत जाना।”

राहुल, एक कॉलेज छात्र, गर्मियों की छुट्टियों में गाँव आया था। वह शहर की आधुनिक सोच से भरा हुआ था, अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करता था। एक दिन वह अपने चचेरे भाई विक्रम के साथ गांव की चाय की दुकान पर बैठा था। तभी किसी ने श्मशान रोड का ज़िक्र किया।

विक्रम ने कहा, “राहुल भैया, उस रास्ते पर रात को कोई नहीं जाता। कहते हैं वहाँ आत्माएँ भटकती हैं।”

राहुल हँस पड़ा, “ये सब बकवास है! आत्मा-वात्मा कुछ नहीं होता।”

दुकानदार बुज़ुर्ग ने धीमे स्वर में कहा, “बेटा, मैंने खुद देखा है—रात को वहाँ एक औरत सफेद साड़ी में खड़ी रहती है। अगर कोई गाड़ी लेकर जाता है, तो वो सामने आ जाती है। कई एक्सीडेंट हो चुके हैं वहाँ।”

राहुल ने चुनौती के लहजे में कहा, “तो फिर आज रात मैं वहीं से होकर लौटूंगा। अगर कुछ हुआ, तो मान लूँगा कि आत्माएँ होती हैं!”

राहुल के इस निर्णय से गाँव में सनसनी फैल गई। सबने उसे मना किया, पर वह नहीं माना। रात के 11 बजे, राहुल ने अपनी बाइक स्टार्ट की और मोबाइल में टॉर्च ऑन कर श्मशान रोड की ओर चल पड़ा।

सड़क बिल्कुल सुनसान थी। चारों तरफ पेड़ों की सरसराहट और झींगुरों की आवाज़ें ही सुनाई दे रही थीं। हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी, जैसे कुछ बर्फीली सांसें उसकी गर्दन के पास से गुजर रही हों।

राहुल आधे रास्ते तक पहुँच चुका था कि उसकी बाइक एकाएक बंद हो गई। उसने बहुत कोशिश की, लेकिन बाइक स्टार्ट नहीं हुई। वह बाइक से उतरा, और तभी उसे कुछ दूरी पर एक सफेद साया दिखाई दिया। उसकी रफ्तार धीमी होती गई। उसने अपनी टॉर्च उस दिशा में घुमाई—वहाँ एक औरत खड़ी थी… लहराती सफेद साड़ी में, झुके हुए सिर के साथ।

राहुल को लगा कोई गाँव की औरत होगी, शायद रास्ता भटक गई हो। उसने आवाज़ लगाई, “कौन है वहाँ? आपकी मदद चाहिए?”

औरत ने धीरे-धीरे सिर उठाया… और राहुल के रोंगटे खड़े हो गए।

उसके चेहरे पर आँखें नहीं थीं—सिर्फ दो गहरे काले गड्ढे!

राहुल डर से कांपने लगा। उसने तुरंत मोबाइल निकाला, लेकिन स्क्रीन ब्लैक हो चुकी थी। न टॉर्च, न नेटवर्क। उसने बाइक धक्का देने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर मानो ज़मीन से चिपक गए हों।

अचानक औरत ज़ोर से चिल्लाई, “तू वापस क्यों नहीं गया? चेतावनी नहीं सुनी?”

उसकी आवाज़ गूंजती रही… और एक तेज़ हवा के झोंके के साथ चारों ओर धुंध छा गई। राहुल ने आँखें बंद कर लीं और भागने की कोशिश की।

लेकिन हर दिशा में वही औरत दिख रही थी—हर पेड़ के पीछे, हर झाड़ी के पास।

अचानक किसी ने पीछे से उसका कंधा पकड़ा। वह चौंककर पलटा तो देखा एक बूढ़ा बाबा खड़ा था, जो श्मशान का रखवाला था। बाबा ने जोर से मन्त्र पढ़े और जमीन पर कुछ राख छिड़की। औरत की चीख सुनाई दी और वह हवा में घुलती चली गई।

राहुल बेहोश हो गया।

जब आँख खुली, तो वह गाँव के मंदिर में था।

बाबा ने बताया, “वो आत्मा एक विधवा की है, जिसकी अर्थी को उसी रास्ते पर दुर्घटना के बाद जला दिया गया था। लेकिन उसका अंतिम संस्कार अपूर्ण रह गया। तभी से उसकी आत्मा वहीं भटकती है।”

राहुल सिहर उठा।

अगले दिन गाँव के पुजारियों और बाबा ने मिलकर उस औरत का पुनः विधिवत श्राद्ध और अंतिम संस्कार किया। उसके बाद से किसी ने उस आत्मा को दोबारा नहीं देखा।

राहुल अब भी गाँव आता है, लेकिन वह कभी भी अंधविश्वास को ‘मज़ाक’ में नहीं लेता। उस रात ने उसे सिखा दिया कि हर बात का वैज्ञानिक उत्तर नहीं होता, और हर आत्मा सिर्फ डरावनी नहीं होती—कुछ अधूरी भी होती हैं।

हर रहस्य के पीछे कोई न कोई अधूरी कहानी होती है। अंधविश्वास को आँख मूंदकर नहीं मानना चाहिए, लेकिन अनुभव से आँखें भी नहीं मूंदनी चाहिए।

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