_लक्ष्मी जायसवाल
गाँव के एक सिरे पर एक पुराना हवेलीनुमा घर था—सफ़ेद दीवारों पर समय की काई जमी हुई थी, और खिड़कियाँ मानो किसी अनकहे डर की गवाही देती थीं। उसी गाँव में पायल की शादी हुई थी, और उसका सुहागघर बना था इसी हवेली के ऊपरी मंज़िल पर।
लोग कहते थे कि उस हवेली में एक दुल्हन की आत्मा भटकती है। वर्षों पहले, शादी की रात ही उसकी मौत हो गई थी—कभी न सुलझने वाले रहस्य में।
पायल की माँ ने ये सब बातें छिपा लीं थीं, क्योंकि हवेली का किराया कम था और शादी का खर्चा ज़्यादा।
शादी की रात जैसे ही पायल कमरे में दाखिल हुई, एक अजीब सी सर्द हवा ने उसका स्वागत किया। कमरा फूलों से सजा था, मगर हर फूल मुरझाया-सा दिख रहा था। पलंग के पास रखे आईने में उसने खुद को देखा—पर एक पल के लिए लगा जैसे कोई और खड़ी हो, लाल जोड़े में, आँखों में आँसू और होंठों पर बदला।
“ये मेरी रात है…” किसी ने कानों में फुसफुसाया।
पायल ने डर के मारे मुड़ कर देखा—कोई नहीं था। पर तभी दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। उसने खोलने की कोशिश की, लेकिन वो मानो किसी बाहरी ताकत से बंद कर दिया गया था।
अचानक कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं। आईना अपने आप चटक गया। और उसी पल पलंग पर बैठी एक और “दुल्हन” दिखी—सिर झुका हुआ, बाल बिखरे हुए, और लाल जोड़े पर खून के धब्बे।
पायल की चीख गले में ही रह गई।
“तू मेरी जगह कैसे ले सकती है?” वह आत्मा गुर्राई।
पायल ने काँपते हुए कहा, “मैंने कुछ नहीं किया… मुझे कुछ नहीं पता…”
“हर दुल्हन को इस कमरे में मारा गया है… क्योंकि मेरी शादी अधूरी रह गई थी। अब हर सुहागरात मेरी है।”
पायल ज़मीन पर गिर पड़ी। उसकी आँखें बंद हो गईं और होश उड़ गया।
अगली सुबह जब दरवाज़ा तोड़ा गया, पायल बेहोश पड़ी थी—उसका लाल जोड़ा काला पड़ चुका था और कमरे में गुलाब की जगह बेलपत्र बिखरे थे।
गाँववालों ने तय किया कि हवेली को बंद कर दिया जाए।
पायल बच तो गई, पर उस रात के बाद उसकी ज़बान बंद हो गई। वो कभी कुछ बोल नहीं सकी।
कुछ कहते हैं आज भी शादी की रात उस हवेली में दुल्हन की चीखें आती हैं। और हर साल, एक लाल जोड़े वाली परछाई, चाँद की रोशनी में उस कमरे की बालकनी पर खड़ी दिखती है…