—जी.पी डोरिया
दिन दहाड़े भी लोग, उस गली से गुजरने में डरते थे। बच्चे तो कभी उस और से जाते ही नहीं थी । लोगो का कहना था कि, उस घर के बाहर जो भूमि के अंदर बनी हुई पानी की टंकी है, उसमें से किसी बच्चे के रोने की आवाज आती है । रात में भी अक्सर वहां अजीबोगरीब घटनाएं होती रहती है । पानी की टंकी का वो ढक्कन अपने आप से ही फड़फड़ा रहा होता है ।
गांव वालों का कहना था कि, उस टंकी में गिर कर एक बच्चा मर गया था। तब से वो घर, और वो टंकी बंध ही पड़ी रहती है। उस टंकी में से कभी पानी खत्म ही नहीं होता । कभी कभी तो टंकी से छलक कर इतना पानी बाहर आ गया होता है, जैसे कि बाढ़ आ गई हो ।
एक दिन एक संत महात्मा, भिक्षा मांगते हुए उस गली की और से गुजरे । तकरीबन दोपहर के दो बजे की आसपास का समय था। पूरी गली में कोई नहीं था, कड़ी धूप को लेकर सब सोए हुए थे। एक दम सन्नाटा सा प्रसरा हुआ था गली में । महात्मा जी, जैसे ही उस गली की और से पसार हुए, उन्हें किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी । उन्होंने रोने की आवाज की और कान रख के ध्यान दिया… तभी उनको ज्ञात हो गया कि, हो ना हो ए किसी आत्मा के रोने की पुकार है। इतनी भयानक आवाज, किसी सामान्य बालक नि रोने की आवाज नहीं है ।
महात्मा जी जैसे ही उस गली की और मुड़े की, भिक्षा देकर वो औरत बोली – महात्मा जी, उस और मत जाए । वहां उस घर में पास, वो टंकी में से किसी बच्चे के रोने की आवाज आती रहती है । आत्मा का वास है उस टंकी में ।
महात्मा जी कुछ नहीं बोले, और वहां से चले गए ।
जहां वो बच्चा रो रहा था, वही जा के खड़े रह गए उस बंध मकान के पास । और भिक्षा के लिए बोले । ” भिक्षाम दही ” तभी वो बच्चा और क्रूरता भरी भयानक आवाज में रोने लगा । महात्मा जी ने ध्यान धरा, और देखा कि… बरसों से किसी बच्चे की आत्मा मुक्ति के लिए पुकार रही है। रो रो कर आक्रंद कर रही है।
महात्मा जी ने जा के, तुरंत ही उस टंकी का ढक्कन खोल दिया । अंदर नजर डाली तो, कुछ दिख नि रहा था। गांव में मालूम हुआ कि, ” महात्मा जी ने उस टंकी का ढक्कन खोल दिया है, जिसमें में बच्चे के रोने की आवाज आती है। ” गांव वाले सब लोग वह पर इकठ्ठे हो गए। देखते ही देखते आपस में फुसफुसाते हुए एक भीड़ जमा हो गई।
कमंडल में से, थोड़ा सा पानी लेते हुए… कुछ मंत्र बोलते हुए महात्मा जी ने उस पानी की टंकी में मंत्रोच्चार के साथ पानी छींटका । जैसी ही पानी की कुछ बंद गिरी उसमें, बच्चे के रोने की आवाज और भी बुलंद हो गई । और पानी अचानक से उबाल मारने लगा । अंदर से एक आवाज आई, ” मुझे भी ले चलो अपने संग। बचा लो मुझे । ” घुटन होती है मुझे इस बंध टंकी में । ले चलो मुझे अपने साथ ।
महात्मा जी गुस्सा होते हुए बोले – खामोश…!
महात्मा जी गांव के कुछ युवाओं को आदेश दिया कि, फौरन उस टंकी का सारा का सारा पानी खाली कर दिया जाए। गांव वालो ने दो तीन मोटर लगा के तुरंत ही सारा पानी खाली करवा दिया। टंकी खाली होते ही, महात्म जी टंकी के अंदर उतर गए। और हाथ में ” अंगूर के दाने जैसी कोई सफेद चमकदार चीज ” लेते हुए बाहर लौटे ।
और बोले, इस बच्चे की आत्मा को अब मैं अपने साथ ले जा रहा हु । इसे मुक्त कर दूंगा। अब से इस टंकी में से कोई भी आवाज नहीं आएगी । गांव वाले चाहे तो, इस टंकी के पानी का अब इस्तेमाल भी कर सकते है बिना डरे ।
तभी, भीड़ में से एक आवाज आई ।
गुरु जी, आपने इस टंकी में से ऐसा क्या लिया ?
क्या था ऐसा ?
गुरु जी – जब ए बच्चा पानी में गिर गया तो, टंकी के साथ मुंह टकराया था । और इसका एक दांत टंकी में टूट के गिर गया था। इसके परिवार ने उसका शव तो निकाल लिया। क्रियाकर्म कर के अस्थि विसर्जन भी कर दिया। लेकिन, इसका वो दांत इसी टंकी में पड़ा रह गया था । जिसके चलते बच्चे की आत्मा इसी टंकी में बंध रह गई थी ।
अभी मैं इसकी आखिरी बच्ची इस दांत को भी गंगा में विसर्जित कर दूंगा । इसी के साथ ही इसकी आत्मा मुक्त हो जाएगी।
तब से के के, आज दिन तक उस टंकी में से ऐसी कोई डरावनी आवाज नहीं सुनाई दी । और लोग अभी उस पानी का इस्तेमाल भी बिना डरे करते है ।।