
मुंबई की शामें जब धुंध में लिपटने लगती हैं और समंदर की लहरें किसी भूली-बिसरी कहानी की तरह किनारे से टकराने लगती हैं, तब शहर की गलियों में कुछ ऐसे किस्से भी जागने लगते हैं जो न तो पूरी तरह सच होते हैं और न ही पूरी तरह झूठ।
विजय और लेजिना, दो प्रेमी, जिन्होंने एक-दूसरे के दिल की दीवारों पर बेइंतहा मोहब्बत लिखी थी, फ़ोटोग्राफी और रोमांच के शौक़ में एक दिन माहिम किले के पास बने पुराने खंडहर में फ़ोटोशूट के लिए निकल पड़े। विजय को विरासत और इतिहास से प्यार था, और लेजिना को वीरान जगहों में जिंदगी तलाशने की आदत थी।
“ये जगह बहुत खूबसूरत है,” लेजिना ने कैमरे की लेंस से झाँकते हुए कहा, “पुरानी दीवारों में कुछ अलफ़ाज़ छुपे होते हैं, सुनो न!”
विजय मुस्कराया, “हां, और हर ईंट में कोई दास्तान बंद होती है — कुछ अधूरी, कुछ खत्म…”
लेकिन उन दोनों को क्या मालूम था कि इस बार जो दास्तान वे छूने जा रहे हैं, वह अधूरी नहीं, अभिशप्त थी।
खंडहर की पहली सीढ़ी
जैसे ही दोनों खंडहर के भीतर गए, वहां की हवा बदल गई।
चारों ओर एक अजीब सी सर्दाहट थी, जो समंदर की नमी से अलग थी।
लेकन जो सबसे ज़्यादा खटक रहा था, वो था सन्नाटा इतना घना, जैसे सदियों से कोई वहाँ आया ही न हो।
“ये खिड़की देखो,” लेजिना ने कहा, “इस पर नक्काशी है, शायद किसी राजकुमारी की कोठरी रही होगी?”
विजय कैमरा लिए आगे बढ़ा। उसने एक तस्वीर ली
क्लिक
लेकिन कैमरे की स्क्रीन पर कुछ और ही था।
तस्वीर में खिड़की के पास एक सफेद साड़ी में लिपटी परछाईं खड़ी थी। चेहरा धुंधला, बाल बिखरे हुए… और आँखें… आँखें मानो सीधे कैमरे से विजय को घूर रही हों।
“लेजिना, यहाँ से चलते हैं।” विजय की आवाज़ कांप रही थी।
लेकिन लेजिना मंत्रमुग्ध सी उसी जगह ठिठकी रही।
वह औरत कौन थी?
“विजय…” लेजिना ने धीमे से कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कोई मुझे बुला रहा है… कोई जो बहुत अकेला है… बहुत दुखी…”
“लेजिना, मज़ाक मत करो। चलो यहाँ से!” विजय ने उसका हाथ पकड़ा, लेकिन लेजिना की आंखें अब किसी और ही दुनिया में डूब चुकी थीं।
अचानक, हवा में एक झटका हुआ — जैसे खंडहर ने साँस ली हो।
एक भारी सी चीख़, बहुत धीमी… लेकिन गूंजती हुई…
“वापस मत जाओ…”
“तुम मेरी कहानी अधूरी मत छोड़ो…”
विजय ने चारों ओर देखा — कोई नहीं था।
लेकिन खिड़की के पास की दीवार पर किसी ने लाल रंग से लिखा था:
“प्रेम को धोखा मत देना। वरना मैं लौट आऊँगी…”
राज खुलता है
किले के एक बुज़ुर्ग चौकीदार से पता चला कि वर्षों पहले यहाँ एक स्त्री — सुलोचना — को उसके प्रेमी ने धोखा दिया था।
सुलोचना ने उसी खंडहर की खिड़की से कूदकर जान दे दी थी।
तब से कहा जाता है कि वह आत्मा वहाँ भटक रही है — हर उस प्रेमी-प्रेमिका की परीक्षा लेने के लिए जो वहाँ जाते हैं।
“अगर उनका प्यार सच्चा होता है, तो आत्मा उन्हें आशीर्वाद देती है। और अगर झूठा…”
विजय और लेजिना एक-दूसरे को देखकर मुस्कराए।
“हमारा प्यार किसी परीक्षा से नहीं डरता,” विजय ने कहा।
तभी खंडहर की दीवारों से एक धीमी सी मुस्कान गूंजने लगी…
जैसे किसी आत्मा ने संतोष की साँस ली हो।
अंतिम क्लिक
वापसी के वक्त विजय ने एक आखिरी तस्वीर ली
लेजिना खिड़की के पास खड़ी, हवा में उड़ते बाल, और उसके पीछे…
एक मुस्कराती हुई औरत — सुलोचना।
लेकिन इस बार वह डरावनी नहीं थी।
उसकी आँखों में आभार था… मानो वो कह रही हो:
“शुक्रिया… मेरी कहानी को पूरा करने के लिए।”