True Horror

शिवड़ी किले का साया
(एक सच्ची घटना पर आधारित)
✒️लक्ष्मी जायसवाल

मुंबई की चहल-पहल और भीड़भाड़ से दूर, समुद्र की लहरों के किनारे एक वीरान किला खड़ा है — शिवड़ी फ़ोर्ट। इतिहास के पन्नों में दर्ज इस किले ने सैकड़ों सालों का वक्त देखा है, लेकिन आज यह केवल एक शांत, सुनसान और रहस्य से भरा स्थान बनकर रह गया है।

मैं एक दिन अकेली वहाँ घूमने के इरादे से गई थी। मौसम थोड़ा नम और भारी था, बादल समुद्र पर झुके हुए थे, और हवा में नमी के साथ एक अजीब सी ठंडक थी। मैं जैसे ही किले के पास पहुँची, वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मी ने मुझे अंदर जाने से रोक दिया।

“अकेली अंदर मत जाना, बिटिया,” उसने कहा, “यहाँ… कुछ ठीक नहीं है।”

मैंने सोचा, शायद यह सिर्फ डराने की बात हो। पर तभी पास की मस्जिद से एक लड़का और वहाँ रहने वाला मुल्ला मेरे पास आए। उन्होंने मुझसे कहा,
“अगर अंदर जाना ही है, तो हम साथ चलते हैं। यहाँ कई लोग कह चुके हैं कि रात में अजीब-अजीब आवाजें आती हैं… कोई साया घूमता है… और जो अकेले जाता है, वो फिर नहीं दिखता।”

मैं थोड़ा झिझकी, लेकिन जिज्ञासा हावी थी। उनके साथ मैं अंदर चली गई।

किला अंदर से पुराना और टूटा-फूटा था, लेकिन उसकी बनावट और आसपास का दृश्य अत्यंत सुंदर था। समुद्र की लहरें दूर तक दिखाई दे रही थीं, और पक्षियों की चहचहाहट के बीच एक अद्भुत सन्नाटा पसरा हुआ था। मैं तस्वीरें लेने लगी — दीवारों पर जालियों से छनकर आती रौशनी, पुराने पत्थरों की दरारें, और उस वीरानी में छुपे हुए इतिहास की सुगंध।

लेकिन तभी… एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी — जैसे किसी ने दूर से मेरा नाम पुकारा हो। मैंने पलटकर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। वह लड़का और मुल्ला भी रुक गए। उनके चेहरों पर एक डर साफ नजर आया।

“ये आवाज़ फिर शुरू हो गई…” मुल्ला बुदबुदाया।

“कौन है वहाँ?” मैंने ज़ोर से पूछा, लेकिन जवाब में केवल गहराई से आती एक ठंडी सनसनाहट मिली।

थोड़ी देर में हवा और भारी हो गई। मेरी तस्वीरें लेने की हिम्मत जैसे जवाब देने लगी। हर कोने से ऐसा लग रहा था कि कोई देख रहा है — पर दिखता कोई नहीं। तभी दीवार के एक कोने से फिर वही आवाज़ आई, इस बार और स्पष्ट… जैसे किसी ने कान में आकर कहा हो — “तू अकेली क्यों आई?”

मैं स्तब्ध रह गई। मेरी सांसें तेज़ हो गईं। मुल्ला ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा,
“बस, बहुत हो गया। चलो बाहर।”

हम तीनों जल्दी-जल्दी बाहर निकले। बाहर निकलते ही जैसे किसी ने मेरी छाती से पत्थर हटा दिया हो — हवा फिर से सामान्य लगने लगी।

जब मैंने मस्जिद के पास खड़े एक बुज़ुर्ग से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया,
“कई साल पहले एक नौजवान फोटोग्राफर यहाँ अकेला आया था। उसके बाद वो कभी वापस नहीं गया। तब से यहाँ एक साया है — जो हर उस इंसान से सवाल करता है, जो अकेले आता है। कहते हैं वो जिन्नात है… जो अकेले को पसंद करता है… और फिर… उसे वहीं रोक लेता है… हमेशा के लिए।”

अब भी जब मैं उस दिन की तस्वीरें देखती हूँ, तो एक फोटो में पीछे की दीवार पर एक धुंधला सा चेहरा दिखता है — जो उस दिन वहाँ नहीं था। शायद… वो वही था…

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