—लक्ष्मी जायसवाल
कहते हैं प्रेम स्वर्ग बनाता है, और विश्वासघात नर्क का द्वार खोलता है। पर अगर प्रेम ही नर्क बन जाए तो?
कविता एक शांत, सुंदर और चंचल युवती थी। कॉलेज में उसकी मुलाक़ात आरव से हुई। आरव अंतर्मुखी, गंभीर स्वभाव का लड़का था, पर उसमें कुछ रहस्यमयी था। दोनों का प्रेम परिपक्व हुआ — आरव ने कविता को अपना सब कुछ मान लिया। वह उसे मंदिर की तरह पूजता, उसकी हर मुस्कान को अपने जीवन का आशीर्वाद समझता।
एक दिन आरव ने कविता को एक और लड़के — समर — के साथ देखा। हँसी, स्पर्श, और छुपी बातें… सब कुछ टूट गया आरव के भीतर। उसने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुरा दिया। उसी रात आरव श्मशान गया… जहाँ कुछ दिन पहले उसकी माँ की अस्थियाँ विसर्जित की गई थीं।
“जिसे मैं देवता मान बैठा, वो राक्षसी निकली,” उसने राख उठाई, उसमें कुछ मिलाया — नीला ज़हर, जिसकी गंध भी आत्मा को जला दे।
अगले दिन कविता को उसने मिलन के बहाने बुलाया। जंगल के किनारे एक पुराने मंदिर में। वहाँ उसने प्रेम की तरह मिठाई में राख मिलाई और कविता को कहा —
“ये प्रसाद है, मां की आत्मा को शांति मिलेगी अगर तुम इसे प्रेम से ग्रहण करो।”
कविता ने खा लिया… और उसी क्षण से, सब बदल गया।
कविता को रातों को चीतों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। आईने में चेहरा विकृत दिखने लगा। बाल खुद ही झड़ने लगे। वह चीखती, बिस्तर काटती, और श्मशान का नाम लेकर
कविता अब सामान्य नहीं रही। वह दिन में छुपती और रात को चिल्लाती—
“राख मुझे बुला रही है…”
गाँव के लोग डरने लगे। उसकी आँखों में राख का धुंआ उतर चुका था। वो बार-बार श्मशान की ओर भागती, वहां बैठकर हड्डियाँ चुनती और उन्हें सजा-संवार कर बातें करती।
कविता की माँ उसे तांत्रिकों और डॉक्टरों के पास ले गई, पर हर जगह एक ही उत्तर मिला —
“इस पर किसी आत्मा का नहीं, किसी ‘प्रेमी का शाप’ है…”
आरव शांत रहा। किसी को कुछ न बताया। सब उसे एक दुखी प्रेमी समझते रहे। पर वह कविता को दूर एक-एक क्षण पागल होते देख रहा था — संतोष से।
हर सप्ताह वह उसी श्मशान में जाता, और आग बुझ जाने के बाद राख बटोरकर एक शीशी में भरता।
वो राख नहीं, उसका टूटा हुआ प्रेम था… और उसकी पवित्रता का अंतिम अवशेष।
एक साल बाद, कविता पूरी तरह से विक्षिप्त हो चुकी थी। उसका चेहरा काला पड़ गया था, बाल जल चुके थे, और वह केवल राख खाती थी। एक रात, पूर्णिमा पर वह चुपचाप आरव के घर पहुँची
“मैं आ गई आरव… मुझे अब राख से प्रेम हो गया है…”
आरव मुस्कुराया। बोला:
“अब तुम मेरे योग्य हो, क्योंकि अब तुम इंसान नहीं रही राख बन चुकी हो।”
उसी रात दोनों की लाशें श्मशान में मिलीं
एक ने खुद को आग लगाई, दूसरे ने उसके साथ जलना चुना।
कहते हैं, श्मशान की उस राख में आज भी कोई लड़की रात को बैठी मिलती है, और धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ चाटते हुए कहती है —
“प्रेम सिर्फ राख में बचता है…”