— ✒️लक्ष्मी जायसवाल
शहर के सबसे पुराने अस्पताल के पीछे एक छोटा-सा मुर्दाघर था। यह इमारत इतनी पुरानी थी कि उसकी दीवारें सीलन से भर चुकी थीं और खिड़कियों पर जंग लगे लोहे के सरिए झूलते रहते थे। कहा जाता था कि वहाँ की दक्षिण दिशा वाली खिड़की हर रात खुद-ब-खुद खुल जाती है भले ही दिन में कितनी भी सावधानी से उसे बंद किया गया हो।
रवि, एक नया मेडिकल स्टाफ था जिसे पहली बार रात्रिकालीन ड्यूटी दी गई। बाकी स्टाफ ने हँसते हुए कहा, “भाई, आज तो तू दक्षिण वाली खिड़की के पास ही रहेगा। संभल के!”
रवि ने मजाक समझकर बात टाल दी, लेकिन जब रात के दो बजे अस्पताल का बिजली कनेक्शन अचानक गुल हो गया और मुर्दाघर की तरफ से किसी के बड़बड़ाने की आवाज आई तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।
टॉर्च लेकर रवि धीमे-धीमे उस तरफ बढ़ा। मुर्दाघर की दीवार से टकराते हुए ठंडी हवा की सरसराहट उसकी साँसों को रोक रही थी। जैसे ही वह दरवाज़ा खोलने ही वाला था, अंदर से खटाक की तेज़ आवाज आई। दरवाज़ा अपने-आप खुल गया।
सामने टेबल पर एक शव सफेद कपड़े में लिपटा हुआ था। लेकिन रवि की नज़र खिड़की पर गई वही दक्षिण दिशा वाली खिड़की जो खुली हुई थी, और बाहर से किसी का साया अंदर झांक रहा था।
“क-क-कौन है वहाँ?” रवि की आवाज काँप रही थी।
साया बिना उत्तर दिए खिड़की से भीतर आ गया। वह कोई और नहीं, बल्कि वही शव था जो टेबल पर लिपटा पड़ा था। अब वह रवि की ओर बढ़ रहा था, उसकी आँखों से काली परछाइयाँ निकल रही थीं। रवि ने पीछे हटते हुए दरवाज़ा बंद करना चाहा, लेकिन उसके पैर जमीं से जैसे चिपक गए थे।
शव ने फुसफुसाते हुए कहा, “मुझे मेरी मौत का बदला लेना है… मेरी आत्मा को खिड़की से निकाला गया था… अब कोई और भी उसी खिड़की से जाएगा…”
रवि की चीख रात के सन्नाटे में गूंज उठी।
अगली सुबह जब नर्सें आईं, तो उन्होंने मुर्दाघर के फर्श पर रवि का शरीर पाया ठंडा और निस्तेज, ठीक उसी टेबल पर रखा हुआ जहाँ पिछली रात एक और शव था। और दक्षिण दिशा वाली खिड़की… फिर से खुली हुई थी।
तब से हर कोई कहता है
“मुर्दाघर की खिड़की सिर्फ हवा से नहीं खुलती… वो किसी की आत्मा को बुलाती है।”