राजस्थान की भूमि जहां एक ओर वीरों के साहस की गाथाएँ बिखरी हैं, वहीं दूसरी ओर वहां की रेत में कुछ ऐसी कहानियाँ भी दबी हुई हैं जो रात के सन्नाटे में जाग उठती हैं। उन्हीं में से एक है — भानगढ़ का किला। यह कोई कल्पित कथा नहीं, बल्कि वर्षों से प्रमाणित घटनाओं पर आधारित है, जिसे नकार पाना मुश्किल है।
भानगढ़ किला राजस्थान के अलवर ज़िले में स्थित है। यह किला अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा है। बाहर से देखने पर यह एक सामान्य ऐतिहासिक स्थल लगता है — ऊँची दीवारें, शाही दरवाज़े, और टूटे हुए खंडहर। लेकिन जैसे-जैसे सूरज ढलता है, यह किला एक भूतिया नगरी में बदल जाता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने इस किले के बाहर चेतावनी बोर्ड लगाया है:
सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किले में प्रवेश वर्जित है।
यह चेतावनी केवल औपचारिक नहीं है। इसके पीछे सालों की घटनाएँ और गायब हुए लोगों की कहानियाँ छिपी हैं।
भानगढ़ की रानी रत्नावती अत्यंत सुंदर, बुद्धिमती और शक्तिशाली मानी जाती थीं। कहते हैं, उनके सौंदर्य की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। यही सौंदर्य उनकी सबसे बड़ी शक्ति और सबसे बड़ा अभिशाप भी बना।
एक दिन, एक तांत्रिक — सिंधु सेवड़ा, जो काले जादू का ज्ञाता था, रानी पर मोहित हो गया। वह जानता था कि वह अपनी सामान्य रूप से रानी को नहीं पा सकता, इसलिए उसने काले जादू का सहारा लिया।
उसने रानी की एक दासी के हाथों ऐसा इत्र भेजा जिसमें आकर्षण मंत्र पढ़ा गया था। लेकिन रानी, जो ज्योतिष और मंत्र विद्या में भी दक्ष थीं, इस चाल को भांप गईं। उन्होंने इत्र को ज़मीन पर गिरा दिया। ज़मीन से टकराते ही वह इत्र एक बड़ी चट्टान में बदल गया और पलटकर तांत्रिक पर गिरा। उसकी मौत उसी वक्त हो गई।
मरते समय सिंधु सेवड़ा ने शाप दिया:
“भानगढ़ उजड़ जाएगा। यहां कोई न जन्मेगा, न बचेगा। ये नगर रातों में रोएगा, और दिन में सन्नाटे में डूबा रहेगा।”
कहते हैं, तांत्रिक के मरने के कुछ ही समय बाद भानगढ़ पर कहर टूट पड़ा। आसमान में काले बादल छा गए, ज़ोरदार तूफ़ान आया। भूकंप सा कंपन महसूस हुआ। महल की ऊँची दीवारें ढहने लगीं, और नगर के लोग या तो मारे गए या भाग गए।
पूरा नगर वीरान हो गया। रानी रत्नावती का भी कोई अता-पता नहीं चला। कुछ लोग कहते हैं कि वह मलबे में दबकर मर गईं, कुछ कहते हैं कि उन्होंने आत्महत्या कर ली।
1960 के दशक में एक पुरातत्व वैज्ञानिकों की टीम किले का अध्ययन करने पहुँची। वे वहां दिनभर रहे और तय किया कि रात में भी रुककर माहौल का निरीक्षण करेंगे। टीम के तीन सदस्य वहीं रुक गए, जबकि बाकी पास के गाँव में चले गए।
सुबह जब गांव वाले आए, तो पाया कि तीनों सदस्य या तो बेहोश थे या बुरी तरह डरे हुए। उनमें से एक की मानसिक स्थिति स्थायी रूप से बिगड़ गई और वह कभी सामान्य जीवन में नहीं लौट सका। दूसरे की कुछ महीनों बाद रहस्यमयी मौत हो गई, और तीसरा विदेश चला गया और उसने कभी वापस भारत का रुख नहीं किया।
2004 में दिल्ली की एक पत्रकार शिवानी गुप्ता, भानगढ़ पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने पहुँची। वह उत्साही थी और डर पर विश्वास नहीं करती थी। उसके साथ दो कैमरामैन थे — रवि और ईशान।
वे दिनभर शूटिंग करते रहे। शाम 6 बजे उन्हें स्थानीय गाइड ने चेतावनी दी —
“मैडम, रात यहीं मत रुकना। यहां कोई नहीं रुकता। ये जगह ज़िंदा नहीं रहने देती।”
पर शिवानी को लगा यह सब सिर्फ डर फैलाने की बातें हैं। उन्होंने तय किया कि वे रात यहीं रुकेंगे।
रात करीब 1 बजे, जब वे महल के बीच बने एक कमरे में बैठे थे, तभी कैमरे की लाइट बार-बार जलने-बुझने लगी। ईशान बाहर गया जांच करने। कुछ मिनट बाद उसकी चीख सुनाई दी।
जब शिवानी और रवि बाहर निकले, तो उन्होंने देखा कि ईशान ज़मीन पर गिरा पड़ा है, आँखें खुली हुईं, पर उसकी पलकें नहीं झपक रही थीं। वह बोल नहीं पा रहा था, पर उसकी आँखों में खौफ बसा था।
वे किसी तरह उसे लेकर पास के गांव पहुंचे। अगले दिन ईशान को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने कहा —
“कोई शारीरिक बीमारी नहीं है, पर वह गहरे मानसिक सदमे में है।”
ईशान आज भी एक मानसिक चिकित्सालय में है, और कभी-कभी नींद में चिल्लाता है —
“वो लड़की आई थी… सफेद लिबास में… बिना आँखों के…”
शिवानी ने अपनी डॉक्यूमेंट्री कभी पूरी नहीं की।
गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं कि वे रात में किले के पास से गुजरते हुए अक्सर किसी औरत की साड़ी लहराते हुए देखते हैं।
कुछ लोगों का दावा है कि किले में से संगीत और नृत्य की ध्वनि आती है।
गांव की एक महिला ने कहा:
“रोज़ सुबह जब सूरज उगता है, तब लगता है जैसे किला थककर सो गया हो। रातभर वहां कुछ चलता है, जो इंसानों की दुनिया से अलग है।”
आज भी भानगढ़ का किला एक रहस्य बना हुआ है।
यह सिर्फ पत्थरों की इमारत नहीं, बल्कि आत्माओं की कैदगाह है।
यहाँ इतिहास रुका हुआ है, और रात में भूतकाल जाग जाता है।
क्या आप कभी वहां जाना चाहेंगे?
अगर हाँ, तो सूर्यास्त से पहले लौट आइए… क्योंकि रात वहां सिर्फ इंसानों की नहीं होती…