__लक्ष्मी जायसवाल
उत्तर प्रदेश के भैरवपुर गाँव की गिनती भले ही आम गाँवों में होती हो, लेकिन यहाँ की एक नहर ने इसे खास बना दिया है। यह नहर कोई साधारण नहर नहीं, बल्कि रहस्यों से भरी हुई है। जब चाँदनी रात में यह नहर चमकती है, तो गाँव वाले दरवाज़े बंद कर लेते हैं, क्योंकि उन्होंने सुना है कि उस नहर में “वो” आता है — नहर का भूत।
भैरवपुर में पीढ़ियों से लोग खेती करके जीवनयापन करते हैं। यह नहर अंग्रेजों के ज़माने में बनाई गई थी। पहले यह नहर पूरे गाँव की ज़रूरतें पूरी करती थी — खेत सींचती, पशुओं को पानी देती और बच्चों के लिए खेलने की जगह भी थी। लेकिन 25 साल पहले एक घटना घटी, जिसने नहर की पहचान बदल दी।
श्यामू नाम का एक 18 वर्षीय लड़का गाँव में बहुत चंचल और मस्तमौला था। वह हर शाम दोस्तों के साथ नहर पर जाता और नहाता। एक दिन बारिश के बाद नहर का पानी बहुत तेज़ था, लेकिन श्यामू ने किसी की न सुनी और पानी में कूद गया। कुछ ही देर में वह बह गया। गाँव वालों ने बहुत खोजबीन की, लेकिन उसका शव कभी नहीं मिला।
उस दिन के बाद नहर का पानी धीरे-धीरे घटने लगा। नहर के किनारे की मिट्टी सख्त और सूनी हो गई। गाँव वालों ने नहर से नहाना छोड़ दिया। लेकिन सबसे डरावनी बात यह थी कि श्यामू की मौत के कुछ ही दिनों बाद नहर के किनारे से अजीब आवाज़ें आने लगीं।
एक रात गोविंद नाम का किसान अपने खेत से देर रात लौट रहा था। नहर के पास से गुजरते हुए उसने सुना, “गोविंद… गोविंद…” यह आवाज़ श्यामू जैसी थी। उसने पीछे देखा — कोई नहीं। लेकिन जब उसने आगे बढ़ने की कोशिश की, तो उसके पैरों के पास पानी की छींटें पड़ीं। वहाँ कोई नहीं था, पर जैसे कोई अदृश्य चीज़ पानी से निकलकर उसका पीछा कर रही थी।
गोविंद भागकर घर पहुँचा, काँपता रहा, बुखार आया और फिर एक हफ्ते तक कुछ नहीं बोल पाया। जब ठीक हुआ, तब बोला — “वो श्यामू था… लेकिन नहीं था… उसका चेहरा अधजला था। उसने मुझे बुलाया और कहा — ‘मैं प्यासा हूँ… मुझे पानी दो…’।”
उस घटना के बाद गाँव वालों ने उस नहर को “भूतिया नहर” कहना शुरू कर दिया। बच्चों को वहाँ जाने की सख्त मनाही थी। रात को कोई भी उस रास्ते से नहीं गुजरता था। कुछ लोगों का मानना था कि श्यामू की आत्मा को मुक्ति नहीं मिली, इसलिए वह नहर में भटक रही है।
इसके बाद हर साल किसी न किसी की नहर के पास मौत हो जाती। किसी का पैर फिसल जाता, कोई अचानक डूब जाता, और कुछ तो ऐसे गायब हुए कि आज तक नहीं मिले। लेकिन अजीब बात ये थी कि शव कभी नहीं मिलते थे। लोगों ने नहर को श्रापित मान लिया।
एक दिन गाँव में एक अघोरी साधु आया। उसने नहर की तरफ देखा और बोला, “यह स्थान पवित्र नहीं रहा। यहाँ एक आत्मा भटक रही है जो प्यास से मरी है। जब तक इसे शांति नहीं मिलेगी, यह और लोगों को बुलाएगी।”
गाँव वालों ने उसे पूजा करवाने के लिए कहा। साधु ने तीन रातों तक नहर के पास हवन किया। तीसरी रात, नहर से एक चीख सुनाई दी — इतनी डरावनी कि पूरा गाँव थर्रा उठा। लेकिन उसके बाद कुछ महीनों तक सब सामान्य हो गया।
सालों बाद, जब गाँव में मोबाइल और कैमरे आए, तो कुछ लड़के रात में वीडियो बनाने के लिए नहर पर गए। उन्होंने मज़ाक में आवाज़ें निकालीं — “श्यामू! आओ न!” तभी एक लड़के ने कैमरे की ओर इशारा किया — “वो देखो!” कैमरे में एक धुंधली सी आकृति दिखी जो पानी से बाहर आ रही थी, आँखें लाल थीं, चेहरा बिगड़ा हुआ और बाल गीले।
वे लड़के डर के मारे चीखते हुए भागे, और एक लड़का तो दो दिन तक बेहोश रहा।
दादी पार्वती, जो अब 90 वर्ष की हैं, बताती हैं — “ये सब कुछ नया नहीं है। पहले भी जब कोई जलकर मरता था, या डूबकर — उसकी आत्मा वहीं रहती थी, जहाँ उसका शरीर नहीं मिल पाता। श्यामू भी उसी का शिकार हुआ। उसने गलती की, लेकिन अब उसका भटकाव औरों को भी ले डूबता है।”
गाँव की पंचायत ने मिलकर निर्णय लिया कि अब उस नहर को पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा। उस पर मिट्टी डलवा दी गई, पेड़ लगवाए गए और वहाँ एक छोटा सा मंदिर बना दिया गया। तब से आज तक कोई घटना नहीं हुई।
कुछ बच्चे आज भी कहते हैं कि जब रात को वहाँ से गुज़रते हैं, तो एक धीमी सी आवाज़ आती है — “मैं प्यासा हूँ…” कभी-कभी रात को मंदिर की घंटी अपने आप बजती है, जबकि वहाँ कोई नहीं होता। कैमरों में कोई हलचल नहीं आती, लेकिन लोगों का डर आज भी वैसा ही है
गाँव की नहर अब केवल एक जगह नहीं, एक चेतावनी है। यह कहानी सिर्फ एक आत्मा की नहीं, बल्कि उस मानवीय गलती की है जो प्रकृति और आत्मा के बीच संतुलन को तोड़ देती है। नहर-भूत की यह कहानी पीढ़ियों तक चलेगी — डराने के लिए नहीं, चेताने के लिए।
“हर नहर सिर्फ पानी नहीं देती — कभी-कभी वह कुछ ले भी जाती है।”