—लक्ष्मी जायसवाल
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव भेरवा में एक पुराना खेत था जिसे गांववाले “शापित खेत” कहते थे। कहते हैं, वहाँ एक बार जो गया, वह फिर कभी सही सलामत नहीं लौटा।
कई साल पहले उस खेत में एक अमीर ज़मींदार जगतराम सिंह की हत्या हो गई थी। हत्या किसने की, ये आज तक रहस्य बना हुआ है। कहते हैं, मरते समय जगतराम ने कसम खाई थी कि जो भी उसकी ज़मीन पर कब्जा करेगा, वह उसे चैन से जीने नहीं देगा।
समय बीतता गया, लेकिन उस खेत में कोई भी फसल नहीं उगती थी। वहां अजीब सी ठंडक और सन्नाटा रहता। रात को वहां से गुजरने वाले लोगों ने एक बूढ़े आदमी की चीखें और पैरों की चूड़ी जैसी आवाजें सुनी थीं। कोई कहता, “मैं ज़िंदा हूँ…”, कोई कहता, “मेरी ज़मीन लौटाओ!”
गांव की एक जिज्ञासु लड़की सुहानी ने तय किया कि वह इस रहस्य का पता लगाएगी। एक पूर्णिमा की रात, वह अपने दोस्त अर्जुन के साथ उस खेत में पहुंची। हाथ में टॉर्च, जेब में नींबू और हनुमान चालीसा लिए दोनों खेत में दाखिल हुए। शुरुआत में सब सामान्य लगा, लेकिन जैसे ही उन्होंने खेत के बीच पहुँचकर ज़मीन को छुआ, ठंडी हवा का झोंका आया और टॉर्च बंद हो गई।
अचानक दूर से एक सफेद कपड़े में लिपटी आकृति झूमती हुई उनकी ओर बढ़ने लगी। सुहानी डर के मारे हनुमान चालीसा पढ़ने लगी। लेकिन आकृति रुक गई और बोलने लगी – “मैं जगतराम हूँ… मुझे धोखे से मारा गया… मेरी आत्मा तभी मुक्त होगी जब मेरे कातिल का नाम सबके सामने आएगा…”
सुहानी ने गांव लौटकर सारे बुज़ुर्गों से बातचीत की, पुरानी किताबें पढ़ीं और एक दिन जगतराम की पुरानी डायरी मिल गई। उसमें लिखा था – “अगर मैं मारा गया, तो समझो रामदयाल ही मेरा कातिल होगा।” रामदयाल उस समय का मुखिया था।
गांव में जब ये बात फैली तो सब हैरान रह गए। रामदयाल अब बूढ़ा हो चला था और अपने गुनाह को स्वीकार कर के रो पड़ा। जगतराम की आत्मा को जब न्याय मिला, तो खेत से वो डरावनी आवाजें हमेशा के लिए बंद हो गईं।
अब वहाँ हर साल लहलहाती फसलें होती हैं। लेकिन सुहानी के साहस को आज भी गांव वाले याद करते हैं।