True Horror


गाँव की भूतिया बावड़ी

डॉ. लक्ष्मी जायसवाल

बेतालपुर गाँव के बाहर, पीपल के घने पेड़ों के बीच एक पुरानी बावड़ी थी। खंडहरनुमा सीढ़ियाँ, पानी में झाँकते काई भरे पत्थर, और बावड़ी की दीवारों पर उग आई लताओं ने उसे और भी रहस्यमयी बना दिया था।

गाँव वाले उसे “चुप बावड़ी” कहते थे। कहते हैं, वहाँ कोई आवाज़ नहीं करता… और जो करता है, वो दोबारा नहीं लौटता।

बुज़ुर्गों की मानें, तो उस बावड़ी की कहानी लगभग सौ साल पुरानी है।

1903 की बात है। गाँव में एक धनी ज़मींदार रहता था – ठाकुर रणधीर सिंह। उसकी बहू मधुमालती सुंदर, शिक्षित और तेज़ दिमाग़ की लड़की थी। शहर से ब्याह कर आई थी और गांव की पुरानी परंपराओं को चुनौती देती थी।

ठाकुर की पत्नी को यह पसंद नहीं था। उसे लगता था कि मधुमालती घर की इज़्ज़त मिट्टी में मिला रही है। रोज़ ताने, प्रताड़नाएं और अंततः… एक दिन वह घटना हो गई।

पूर्णिमा की रात थी। हवाओं में अजीब-सी सरसराहट थी। ठाकुर की पत्नी ने मधुमालती को पूजा के नाम पर बावड़ी तक बुलाया… और धक्का दे दिया।

मधुमालती का लाल घूंघट उड़ता हुआ पानी में समा गया। किसी ने कुछ नहीं देखा। और जिसने देखा, वह कभी बोला नहीं।

मधुमालती की मौत के बाद गाँव में अजीब घटनाएँ होने लगीं। रात के तीसरे पहर, रोने की आवाजें आतीं। बावड़ी के पास जाते ही लाल चुनरी हवा में लहराती दिखाई देती।

कुछ लोग कहते हैं, बावड़ी के पानी में चेहरा दिखता है… और फिर कोई हाथ गर्दन पकड़ लेता है।

कई युवक उस बावड़ी की हिम्मत आज़माने गए, लेकिन कोई लौटकर नहीं आया। जो लौटे, वे पागल हो चुके थे – बस एक ही वाक्य बोलते थे:
“उसने मुझे बुलाया था…”

2025 में, बेतालपुर में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट आ चुका था। गाँव के युवाओं में हिम्मत और जिज्ञासा दोनों थी।

एक यू-ट्यूबर राहुल ने यह सुना और सोचा — “क्यों न एक वीडियो बनाया जाए ‘Haunted Well Challenge’ का?”

उसने अपने तीन दोस्तों के साथ कैमरा लगाया, और आधी रात को बावड़ी पहुँचा। शुरू में सब कुछ सामान्य था, लेकिन फिर…

कैमरा अपने आप ऑन-ऑफ होने लगा।
एक-एक कर के दोस्त गायब होने लगे।
और फिर कैमरे में रिकॉर्ड हुआ – एक धुंधली लाल साड़ी में औरत, जो राहुल के पीछे खड़ी थी।

अगले दिन गाँव वालों ने कैमरा तो पाया… लेकिन राहुल और उसके दोस्तों का कोई सुराग नहीं मिला।

अब गाँव वाले वहां पास भी नहीं जाते। प्रशासन ने बावड़ी को लोहे की सलाखों से ढक दिया है।
लेकिन हर पूर्णिमा की रात, कोई आवाज़ आती है –
“मुझे पढ़ना था, मुझे जीना था…”

और तभी हवा में लहराती है – लाल चुनरी।

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