✒️—जी.पी डोरिया
✒️—लक्ष्मी जायसवाल

रात के ठीक 12 बजे, रागिनी अपने कमरे में अकेली पढ़ाई कर रही थी। खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी और चारों ओर सन्नाटा पसरा था। तभी खिड़की के बाहर कुछ हिला। उसने झाँककर देखा—एक काली बिल्ली उसकी ओर टकटकी लगाए देख रही थी। उसकी आँखें चमक रही थीं जैसे अंगारे हों।
रागिनी ने सोचा, “साधारण बिल्ली होगी”, और वापस पढ़ने लगी। लेकिन अगले ही पल खिड़की अपने आप खुल गई और वह काली बिल्ली कमरे के अंदर आ गई। वह सीधा उसकी मेज़ पर बैठ गई और उसकी किताब पर पंजा मारकर बोली—”यह जगह अब तेरी नहीं रही…”
रागिनी डर के मारे पीछे हट गई। तभी कमरे की बत्ती बुझ गई और सारा कमरा ठंडा पड़ गया। जब उसने माचिस जलाकर रौशनी की, तो देखा—बिल्ली गायब थी, मगर दीवार पर खून से लिखा था: “मैं लौट आई हूँ…”
रागिनी की चीख सुनकर सब दौड़े आए, लेकिन तब तक वह बेहोश हो चुकी थी… और काली बिल्ली? वह हवेली की छत पर बैठी फिर से टकटकी लगाए देख रही थी।
अगली रात, कोई और उसे देखे बिना न रह पाया।लोगो ने पानी छींटक कर, किसी तरह रागिनी को होश में लाए । जब रागिनी की आंख खुली तो, उसके सामने लोगो की भीड़ जमा हुई खड़ी थी । खून से लथपथ वो लाइन पढ़ कर, रागिनी चीख कर कब ढल पड़ी, और उसके बाद क्या हुआ उसका कुछ पता नहीं था उसको ।
रागिनी रात वाली वो घटना से इतनी बौखला गई थी, इतनी डर गई थी कि वो, किसी को कुछ बता ना पाई । उसे लगा कि, तुच्छ सी मेरी ऐसे बातों पर भला कौन यकीन करेगा । फिर भी, सब के चले जाने के बाद, रागिनी ने कॉल कर के, जो हुआ था वो सारी कहानी अपनी छोटी बहन से शेर कर दी । छोटी बहन ने भी सांत्वना देते हुए ए कहा कि, तू घबराना नहीं। मैं, कल आ ही रही हु वहां। तू डरना नहीं ठीक है ।
इत्तेफाक से हुआ, बुरा हादसा मान के… सबकुछ भुला कर रागिनी फिर से उसी कमरे में अकेले बैठी पढ़ाई कर रही थी । की तभी, मौसम के बदलते रुख के साथ अचानक ही तेज गति से ठंडी हवाये बहने लगी । तेज हवाओं को चलते ही खिड़कियां आपस में बुरी तरह से आवाज करती हुई टकरा रही थी । खिड़कियां कभी खुलती, तो कभी बुरी तरह से आपस में टकराते हुए बंध हो जाती। खिड़की से आती हुई तेज हवा, रागिनी के खुले बाल उड़ उड़ के घड़ी घड़ी उसके चेहरे को ढक दे रहे थे। कुछ अलग ही एहसास हो रहा था रागिनी को । की तभी, ऊपर से अचानक से कुछ गिरने की धड़ाम से आवाज आती है, और बड़ा सा धमाका होता है । अचानक ही हुए धमाके से रागिनी एकदम से डर जाती है । अचानक हुए ऐसे हमले से वो, मारे डर के पसीने से लथपथ हो जाती है । रागिनी, फटाक से बल्ब ऑन कर के उस और देखती है तो, एक बड़ा सा चूहा… उस और से तेजी से भागा हुआ जा रहा था । चूहे को देख के, रागिनी की जान में जान आई ।
फिर भी रागिनी काफी डर चुकी थी । धड़कने भी उसकी बढ़ गई थी । इतनी तेज तरार हवा के चलते भी रागिनी का पूरा बदन पसीने से भीग गया था । कल हुआ उस हादसे से अभी भी रागिनी डर को अंदर से निकाल नहीं सकती थी । घड़ी की और देखा तो रात के डेढ़ बजने आए थे। डर के मारे, रागिनी ने कमरे के सारे खिड़की, दरवाजे स्टॉपर लगा के एक दम से बंद कर लिए । सामने वाले आइने का पर्दा भी खींच लिया रागिनी ने । सब और से सब खिड़की दरवाजे बंद कर लिए । और एक सुकून की सास लेते हुए, आराम से पलंग पर बैठी । की, तभी पलंग के नीचे से म्याऊं….. कर के बिल्ली के बोलने की आवाज सुनाई दी ।
बंध कमरे में बिल्ली की आवाज सुनते ही, मानो जैसे रागिनी की तो सांसे ही अटक गई । रागिनी कुछ सोचे समझे कुछ हरकत करे, उससे पहले ही पलंग के नीचे बैठी बिल्ली ने….. अचानक से उस चूहे पर हमला बोलते हुए, पिलर से सारे के सारे डिब्बे नीचे गिरा दिए । और एक ही झपट में चूहे को मुंह में दबोच लिया। दबोच के चूहे को लेकर भागने के लिए बिल्ली ने इधर उधर भाग दौड़ की, लेकिन सारे खिड़की दरवाजे बंद थे । कही कोई दरवाजा खुला न मिला बाहर जाने के लिए तो, मारे डर और घबराहट के बिल्ली ने सीधा रागिनी के गले पर हमला बोल दिया। रागिनी के गले से चिपक गई । रागिनी चीखती रही, चिल्लाती रही… खुद को छुड़वाने के लिए हाथ पैर मारती गई। लेकिन, चारों और से बंध कमरे को लेकर, धीरे धीरे कर के रागिनी की आवाज उसी कमरे में दफन हो गई । देखते ही देखते, कुछ ही क्षणों में खून से लथपथ वो कमरा एक दम शांत हो गया । तूफान के बाद की वो शांति, वो खौफनाक रात जैसे रागिनी की हर एक आह… हर एक चीख को निगल गई । खून की लकीर बहती हुई दरवाजे के भीतर से बाहर आ गई । बिल्ली कुछ देर यूं ही अपनी चमकीली आंखों के संग, रागिनी की छाती पे बैठी उसका खून चूसती रही ।
खून की लकीर बहती हुई दरवाजे से बाहर आ गई ।
सुबह जब, रागिनी की बहन वहां पर आई और उसके कितना कुछ आवाज देने के बाद भी, दरवाजा खटखटाने के बाद भी अन्दर से किसी ने दरवाजा नहीं खोला । और बाहर इस तरह खून की लकीर देख के, वो भी काफी डर गई थी ।कमरे के बाहर ऐसे खून की लकीरे देख के वो फुट फूट के रोने लगी । रोते हुए उसने आसपास के लोगों को इकठ्ठा कर लिया । दरवाजा तोड़ के देखा तो, रागिनी पलंग के पास ही ढेर हुई पड़ी थी । गले पर बिल्ली के नाखून के निसान साफ साफ दिख रहे थे । और खून से लथपथ जमीन पर बिल्ली के पैरों के निशान भी दिख रहे थे । पलंग के नीचे मरा हुआ चूहा… पूरा कमरा गंध मार रहा था।
रागिनी की बहन ने एक नजर दीवार की और डाली तो, दीवार पर खून से लिखा हुआ था। ” मैं लौट आई हु । ”
रागिनी की बहन ए सब नजारा देख कर, फुट फूट के रो रही थी । तभी जमा हो चुकी भीड़ में से, ख़ुशपुशाते हुए एक आवाज आई – इस लड़की को ए कमरा दिलवाया ही किस ने ? क्या उसको नहीं पता था कि, यहां पर एक लड़की फंदा लगा कर, लटक के मर चुकी है। तब से ए कमरा बंद ही रहता है । फिर, ए कमरा किसने दिलवाया इसको ?
रागिनी की मौत के बाद वह कमरा फिर से बंद कर दिया गया। आसपास के लोग उस जगह को अपशगुनी मानने लगे। लेकिन कुछ सवाल अब भी हवा में तैर रहे थे — आखिर वह बिल्ली कहां से आई? चूहा कहां से आया? और सबसे बड़ा सवाल — दीवार पर खून से लिखा वो वाक्य — “मैं लौट आई हूँ” — आखिर किसने लिखा?
रागिनी की बहन, नेहा, उस हादसे के बाद सदमे में चली गई थी। कई दिन तक उसने किसी से बात नहीं की। लेकिन हर रात उसे एक ही सपना आता — रागिनी, खून से सना हुआ कमरा, और वो बिल्ली, जिसकी आंखें आग की तरह चमकती थीं।
तीन महीने बीत गए।
नेहा ने फैसला किया कि वह रागिनी की मौत का सच जाने बिना चैन से नहीं बैठेगी। उसने कॉलेज में छुट्टी ली और उसी हॉस्टल में रहने का आवेदन किया। किसी को शक न हो, इसलिए उसने अपना नाम भी बदल लिया — नैना।
जिस दिन नेहा उर्फ नैना हॉस्टल पहुंची, वहां का माहौल बहुत शांत था — असहज रूप से शांत। रजिस्ट्रेशन करते समय जब उसने उसी कमरे में रहने की इच्छा जताई, तो वार्डन ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
“बेटा, वो कमरा… कई सालों से बंद है। उसमें कुछ… ठीक नहीं लगता।”
नेहा ने मजबूती से कहा, “मुझे डर नहीं लगता। मैं रिसर्च कर रही हूँ। मैं वही कमरा चाहती हूँ।”
मजबूरी में वार्डन ने चाबी थमा दी, लेकिन जाते-जाते कहा, “अगर कुछ भी अजीब लगे, तो फौरन कमरा छोड़ देना। वहाँ पहले भी… बहुत कुछ हुआ है।”
नेहा ने दरवाज़ा खोला।
कमरा वैसा ही था — पलंग, अलमारी, टेबल, और दीवार पर अब भी उस खून के धब्बों के निशान बाकी थे। गंध अब भी हल्की-सी बाकी थी। नेहा ने पूरा कमरा साफ किया, अगरबत्ती जलाई, और रागिनी की तस्वीर सामने रख दी।
रात होते ही, सब कुछ बदलने लगा।
तेज हवाएं, अजीब आवाजें, बंद दरवाजों का खुद-ब-खुद खुलना, और सबसे डरावनी बात — आईने में बार-बार रागिनी की परछाईं दिखने लगी।
नेहा ने तय किया — वो इस बार हार नहीं मानेगी।
उसने कमरे में कैमरे लगाए, वॉइस रिकॉर्डर ऑन किया और अपनी डायरी में हर घटना दर्ज करनी शुरू की।
दूसरी रात को, करीब रात 2:03 पर, रिकॉर्डर में एक आवाज रिकॉर्ड हुई:
“मैं लौट आई हूँ… और इस बार, किसी को नहीं छोड़ूंगी।”
उसके तुरंत बाद कैमरे की स्क्रीन पर हल्की सी परछाईं उभरी — एक लड़की… लटकी हुई… ठीक उसी जगह जहाँ रागिनी की मौत हुई थी।
नेहा की रूह काँप गई। लेकिन अब वह सिर्फ डरने नहीं आई थी — वह जानना चाहती थी कि वो आत्मा कौन है, और क्या चाहती है?
तीसरी रात, कमरे में कुछ ऐसा हुआ जो नेहा की कल्पना से भी परे था —
दरवाज़ा अपने-आप खुला। आईने से रागिनी की आत्मा निकली, और उसने कहा — “तू तो मेरी बहन है, फिर क्यों आई है मेरी मौत की कीमत चुकाने?”
नेहा काँप गई। उसने साहस बटोरकर पूछा — “दीदी, ये सब क्यों हो रहा है?”
रागिनी की आत्मा के होंठ हिले… लेकिन उससे पहले ही कमरे की बत्ती गुल हो गई। फिर वही म्याऊं… और कुछ सरसराहट।
बिल्ली फिर से लौट आई थी।