मीनाक्षी को पुराने सामान इकट्ठा करने का शौक था। एक दिन उसे एक एंटीक दुकान से बहुत सुंदर आइना मिला। लकड़ी की नक्काशीदार फ्रेम, और बीच में चमकता काँच — उसने बिना सोचे 500 रुपये में खरीद लिया।
दुकानदार ने उसे एक बात कही थी —
“इसे रात 3 बजे के बाद मत देखना।”
मीनाक्षी हँस दी, सोचकर कि ये भी एक चाल है बिक्री बढ़ाने की।
उस रात, उत्सुकता में वह उठी और आइने के सामने जा बैठी। घड़ी ने 3 बजाए, और जैसे ही उसने खुद को देखा, उसका अक्स मुस्कुराने लगा… जबकि मीनाक्षी का चेहरा भावशून्य था।
“तुम कौन हो?” उसने कहा।
आइने से आवाज़ आई,
“तू वही है… जो मैं बनना चाहती थी। अब मैं आज़ाद हो जाऊँगी।”
अचानक आइने की सतह से एक साया बाहर निकला — हूबहू मीनाक्षी की शक्ल वाला, पर उसकी आँखें काली थीं, और चेहरा बेरहम।
“अब मेरी बारी है ज़िंदा रहने की,” वो बोली।
मीनाक्षी चीखी, लेकिन आवाज़ बाहर नहीं आई। उसका शरीर जकड़ गया। आइने का अक्स असली मीनाक्षी के शरीर में समा गया, और असली मीनाक्षी आइने के अंदर कैद हो गई।
अब हर कोई मीनाक्षी को पहले से अलग मानता है — चुपचाप, रहस्यमयी, और कभी-कभी आईने में देर तक खुद को निहारती हुई।
और जब कोई उस आइने को छूता है… तो अंदर से किसी और की आँखें झाँकती हैं, जो मदद के लिए पुकारती हैं।