Horror Poem

दीवारों की सरगोशियाँ —लक्ष्मी जायसवाल

आधी रात की ठंडी सांसें,
गूँज रही हैं खाली प्यासें।
दीवारों से आती आहट,
जैसे कोई कहे कोई बात अनजानी सी राहत।

दरवाज़ा बंद, फिर भी खुलता,
परछाईं हर कोने में चलता।
दीये की लौ काँपती जाए,
साया चुपके से पास आए।

आईने पर खरोंच उभरे,
चेहरा कोई धुंध में उभरे।
हँसती आँखें, पीली त्वचा,
कहती हैं — “यह घर है मेरा!”

फर्श के नीचे कोई हँसता,
नींद में तेरा नाम जो बड़बड़ाता।
खिड़की से झाँकती है मौत,
संग लाती सर्द हवाओं की चोट।

भाग न पाए, ठहर गया समय,
अब तू भी है इस खेल में सम्मिलित स्वयं।
दीवारें सब कुछ सुनती हैं,
और रात भर तुझसे बातें करती हैं।

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