Horror Story

भटकती आत्मा : हरीश की पुकार

—✒️जी.पी डोरिया

—✒️लक्ष्मी जायसवाल

( गहरी सांस लेते हुए )
जैमिन – भाभी आप…!
आप यहां क्या कर रही हो इतनी रात में ?
और इतनी रात को, बाल को ऐसे खुले कर के, कोई ऐसे वीरान से जगह में खड़ा रहता है क्या । डर के मारे किसी की जान ले लोगे आप ।
भाभी – दांत दिखाते हुए, खरडूस सा मुस्कुराते हुए । भैया… हम भी उसी प्रसंग में ही थे । ए तो मेरी ननंद को शौच करना था तो, लौटा ले के हम इस और आए थे झाड़ियों में । वो झाड़ियों में गए है, और मैं यहां खड़ी थी ।की, तभी उनकी ननंद जी भी लौटा ले के, झाड़ियों में से बाहर आई । चलो… भाभी । और ए लड़का कौन है ??

जैमिन – इससे पहले कि, कोई मुझे इतनी रात तले, इन दो अकेली औरतों के साथ इन झाड़ियों के बीच देख ले, और उल्टा सीधा सोचे। इससे पहले फुट लेना चाहिए यहां से जैमिन बाबू । वरना… सुबह ना जाने ए बात, किस नए रंग रूप  के साथ दोहराएगी जाएगी । निकल ले बेटा यहां से ।

जैमिन दबे पाव मुड़ते हुए, तुरंत ही वहां से निकल कर वापिस आ जाता है । वापिस आ के देखता है तो ए क्या…!

जैमिन का दोस्त कौशिक जहां खड़ा था, ठीक उसी जगह पर जमींदोस्त हो के ढेर हो के पड़ा हुआ था । साथ में वो जो ग्यारह साल का लड़का था, वो भी गुम था । आसपास कही दिख नि रहा था । कौशिक जहां जमींदोस्त हो के पड़ा हुआ था, उसकी बगल में ही उस लड़के के कपड़े, ” वही सफेद टी शर्ट और नीले रंग की उसकी चड्डी पड़ी हुई थी । ए सब देख के, जैमिन की जान निकल आई ।

कौशिक को क्या हुआ ?
कुछ हुआ तो उसने मुझे आवाज तक नहीं लगाई ?
और वो लड़का जो जैमिन के साथ, यहा खड़ा था वो कहा गया ? सिर्फ उसके कपड़े ही यहां पर पड़े हुए है ?
जैमिन के शरीर के सारे के सारे बाल, मारे डर के खड़े हो गए थे। अंदर से वो इतना डर गया था कि, क्या किया जाए कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसे ।

उन दोनों औरतों को, बुलाने के लिए… आवाज लगाने के लिए जैमिन ने सामने नज़र डाली तो, वहां भी कोई नहीं था । वो दोनों भी झाड़ियों से होते हुए दूसरे रास्ते से चली गई थी । आसपास कोई नजर नहीं आ रहा था । बस, गांव में से डीजे की आवाज ही सुनाई दे रही थी ।

जैमिन जैसे तैसे हिम्मत इकठ्ठा कर के, कौशिक को कंधे पर उठा के ले के… मामा के घर ले आया । और वही खटिया पर पटक के सुलाया उसे । और जा के मामा को बुला ले आया । सारी की सारी कहानी बताई मामा को उसने । की, मंदिर की वो पास वाली जगह पर ऐसा ऐसा हुआ था । और जब मैं वहां वापिस लौटा तो, कौशिक जमीन पर ढेर पड़ा था, और उस लड़के के कपड़े वहां पर पड़े थे ।

मामा जी ने थोड़ा सा पानी छींटक के कौशिक को उठाया । कौशिक… उठते ही जोर जोर से रोने लगा । लगातार कुछ मिनिटों तक वो रोता ही रहा ।  फिर खुद को शांत करते हुए उसने बोला –

” वो लड़का, मेरे साथ ही … मारे डर के मेरा हाथ पकड़ के खड़ा था । तुम उस औरत की और गए कि, तभी वो लड़का… जोरो से मेरा हाथ पकड़ के हंसने लगा।  मैने उसकी और देखा तो, चीते सी चमक रही उसकी बड़ी बड़ी आंखे मुझे ही घूर रही थी । इतनी जोरो से हस रहा था कि, मै तो डर ही गया । की तभी, देखते ही देखते वो लड़का… खुद से पिघलते हुए जमीन के साथ , मिट्टी में मिल गया । और उसके कपड़े वही के वही पड़े रहे । ए सब देख के मै वही के वही ढेर हो गया । आगे क्या हुआ… मुझे यहां कौन लाया कुछ पता नहीं है…

कौशिक के मामा – गुस्सा करते हुए दोनों पर । यहां इतना नाच गाना हो रहा है । डीजे चल रहा है । सब लोग मौज मस्ती कर रहे है । तभी तुम दोनों को उस और जाने की क्या जरूरत थी ? शौच ही करना था तो, यही कही किसी खुली जगह में कर लेते । अभी फोकट का शोर शराबा करते हुए किसी का प्रसंग बिगाड़ना नहीं है । सो जाओ अभी दोनों । सुबह बात करेंगे इस विषय में।

लेकिन, इतना सब हो जाने के बाद; दोनों में से एक को भी आंखों में नींद आए क्या ? जैसे तैसे वही मुद्दे और घटनाक्रम पर बात करते हुए दोनों ने सुबह कर दी । दिन हो गया, तो दोनों में अब थोड़ी सी हिम्मत आ चुकी थी, अंदर के डर को मारते हुए।  स्नान कर के दोनों तैयार हो गए, तभी पड़ोस वाले चाचा चाय के लिए मेहमान को बुलाने आए । जैमिन और कौशिक भी सब के साथ चले गए उस चाचा के घर।

जैसे ही वो चाचा के घर के अंदर घुसे की,
उसी लड़के की तस्वीर, फूलों के हार से सुसज्जित दीवार पर टंग रही थी वहीं । उसी लड़के की तस्वीर को दीवार से टंगी देख, दोनों के होश ही उड़ गए । कौशिक तो चाय पी रहा था, फिर भी उसके हाथ कप कपा रहे थे । तभी जैमिन ने पूछा – ए लड़का..! ए लड़का आपका है क्या ? क्या हुआ था इसे ? इतनी छोटी सी उम्र में कैसे चल बसा ?

कौशिक के हाथ से, रकाबी लेते हुए, उस लड़के के पिताजी बोले । – दो साल हो गए हमारे हरीश को चल बसे हुए । गांव के बाहर जो मंदिर रहे, वही पास में ही उसने एक गड्ढा खोदने का काम रखा था।  उस दौरान ही, गड्ढा खोदते वक्त एक बड़ी सी भेखड़ धस पड़ी उस पर और उसी में दब के मर गया वो । छोटी सी उम्र में छोड़ के चला गया हमे । गांव के लोग कहते है, उसकी आत्मा भटक रही है । और आए दिन किसी ना किसी को मिल आता है । लेकिन, हमे तो भाई आज तक नहीं दिखा कही वो । ना ही सपने में आ के कोई इच्छा रखी उसने । पता नहीं क्या हो रहा है । किसी को आज तक परेशान नहीं किया है उसने… पर कही न कही दिखाई देता है। ऐसा गांव वाले बोलते है। 
तस्वीर को देखकर जैमिन और कौशिक की आंखों से जैसे नींद उड़ गई थी। चाय उनके हाथ में थी, लेकिन अब स्वाद महसूस नहीं हो रहा था। कमरे में मौजूद बाकी लोग आपस में बातों में मशगूल थे, लेकिन इन दोनों के मन में बस एक ही सवाल था – हरीश की आत्मा को आखिर चैन क्यों नहीं मिल रहा?

चाय पीकर जैसे-तैसे दोनों वहां से निकले और घर लौट आए।

जैमिन – “कौशिक, ये कोई साधारण बात नहीं है। हम दोनों ने जो देखा, वो सपना नहीं था। अब इस राज़ को जानना पड़ेगा।”

कौशिक – “तू सही कह रहा है, लेकिन डर भी लग रहा है। अगर फिर से कुछ हो गया तो?”

जैमिन – “डरना नहीं है। इस बार हम अकेले नहीं जाएंगे। मामा जी से बात करेंगे। शायद गांव में कोई ऐसा हो जो आत्माओं या पुरानी घटनाओं के बारे में जानता हो।”

अगले दिन उन्होंने मामा जी से इस बारे में खुलकर बात की।

मामा जी – (गंभीर होकर) “अगर तुम लोग सच कह रहे हो, तो तुम्हें ‘घनश्याम बाबा’ के पास जाना चाहिए। वो गांव के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे बैठते हैं। बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन बिना पूछे कुछ नहीं बताते।”

शाम होते ही जैमिन और कौशिक घनश्याम बाबा के पास पहुंचे। बाबा आंखें बंद किए ध्यान में बैठे थे। जैसे ही जैमिन ने उनके पास बैठने की कोशिश की, बाबा ने आंखें खोलीं।

बाबा – “जिसे तुमने देखा, वो हरीश है। लेकिन वो आत्मा अब मासूम नहीं रही। वो कुछ ढूंढ रही है… कुछ अधूरा है उसके साथ।”

जैमिन – “लेकिन बाबा, वो तो किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, फिर उसकी आत्मा क्यों भटक रही है?”

बाबा ने आंखें मूँद लीं, और धीरे-धीरे बोले –
**”हर आत्मा को शांति तभी मिलती है जब उसकी मृत्यु के समय की अंतिम इच्छा पूरी हो। हरीश के साथ कुछ ऐसा हुआ, जो कोई जानता नहीं। तुम्हें गड्ढा खोदने वाली जगह पर रात के तीसरे पहर जाना होगा – जब आत्माएं सबसे ज़्यादा सक्रिय होती हैं। वहीं तुम्हें जवाब मिलेगा। लेकिन याद रखो – जो दिखता है, वह हमेशा सच नहीं होता।”

बाबा के इन शब्दों ने दोनों की रूह कंपा दी। फिर भी, वे इस रहस्य को सुलझाने की ठान चुके थे।

रात को 3 बजे।

जैमिन और कौशिक एक टॉर्च और एक पूजा की थाली लेकर मंदिर के पास उस गड्ढे वाली जगह पर पहुंचे। हवा शांत थी, लेकिन माहौल भारी लग रहा था।

जैसे ही उन्होंने वहां दीप जलाया, अचानक से ज़मीन से किसी के पैरों की आहट सुनाई दी। झाड़ियों के पीछे से एक परछाई निकली — वही लड़का… हरीश!

लेकिन इस बार वो रो रहा था।

हरीश की आत्मा – “मुझे बचाना था… मैंने देखा था… वहां कुछ और भी था उस गड्ढे में… एक और शव!”

जैमिन और कौशिक दोनों सन्न रह गए।

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