True Horror

“बग़ीचे की वो औरत”— लक्ष्मी जायसवाल

साल 1994 में दिल्ली के मेहरौली इलाके में एक पुराने और उजड़े से बंगले के पास कुछ मजदूर काम कर रहे थे। उस जगह को लंबे समय से वीरान समझा जाता था। कहते थे कि वहाँ कोई रहता नहीं, क्योंकि हर रात वहाँ अजीब चीखें सुनाई देती थीं।
रामू नाम का एक मजदूर उस बग़ीचे में घास काट रहा था, तभी उसने देखा – सफेद साड़ी में एक औरत बग़ीचे के कोने में खड़ी है। चेहरे पर घूंघट था, लेकिन उसकी आवाज़ साफ सुनाई दी –

“पानी मिलेगा क्या… बहुत प्यास लगी है…”

रामू डर गया, लेकिन उसने सोचा कोई गाँव की औरत होगी, और पास की बाल्टी से पानी लाकर दे दिया। लेकिन जैसे ही औरत ने पानी लिया, वो गायब हो गई। पानी का लोटा वहीं गिरा पड़ा था।

उसी रात मजदूरों ने दोबारा बग़ीचे से चीखने की आवाज़ सुनी। साथ ही चूड़ियों की झंकार, जैसे कोई औरत नाच रही हो। सबने डर के मारे काम रोक दिया।

रामू ने सोचा शायद वह कोई आत्मा है और उसने हिम्मत करके अगली सुबह बग़ीचे के उसी कोने में खुदाई शुरू की। दो फीट खुदाई के बाद एक कंकाल मिला, जो पूरी तरह महिलाओं के गहनों और साड़ी में लिपटा हुआ था।

बाद में पता चला कि उस बंगले में एक औरत अपने पति के साथ रहती थी। पति को शक था कि उसकी पत्नी किसी और से मिलती है। गुस्से में आकर उसने उसे बग़ीचे में ही ज़िंदा दफना दिया था। तब से वो आत्मा हर रात पानी मांगती थी।

कहते हैं कि जब से कंकाल को विधिवत दफन किया गया और उसकी आत्मा की शांति के लिए पूजा करवाई गई, तब जाकर वो चीखें बंद हुईं। लेकिन कई लोग आज भी कहते हैं कि वो औरत आज भी पानी मांगने आती है, खासकर उन लोगों से जो बग़ीचे में अकेले होते हैं…

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