होकर दुनिया से दूर मैं,
खामोश सी रहने लगी थी,
जो था कोई अपना सा मेरा,
अब उससे खफा सी थी।
बीता था बचपन मेरा ,
फूलों की वादियों में ,
जवानी बीत रही थी मेरी ,
दुनियां की कठिनाइयों में।
मिलता है सुकून मुझे अब ,
दुनियां से दूर , इन पर्वत पर ,
शरीर छोड़ा दुनियां के फर्श पर ,
खुद को पाया मैने पीपल के पेड़ पर ।
कभी आत्मा के नाम से डर लगता था,
अब खुद को आत्मा में पाकर क्रोध सा था,
सुनकर जो बात लोगो की आत्महत्या किया,
खुश है वो लोग जो मुझे पल पल सताया था।
छीन लेती खुशियां मैं इनकी भी ,
अगर याद न रहता मां की दी हुई ,
कसम, वादे, और उनकी फरयाद,
बेबस सी हो गई हूँ दुनियां से दूर मैं।
के फिर लौट आई हूँ मैं अपने गांव
जहां बीता था बचपन मेरा बागों में
जी हां होकर दुनियां से दूर मैं ,
खामोश सी रहने लगी हूँ।
_ Siddiqui Rukhsana