छाया की पुकार..
उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव “गुंजनपुर” में एक पुराना हवेली खंडहर पड़ी थी। गाँव वाले कहते थे कि वहाँ रात को अजीब सी आवाजें आती हैं… जैसे कोई औरत रो रही हो… या किसी के कदमों की आवाज… वो भी बिना शरीर के।
लक्ष्मी,जो हाल ही में दिल्ली से अपने गाँव लौटी थी, इन सब बातों पर विश्वास नहीं करती थी। शहर में पढ़ाई करके लौटी थी, तो उसे यह सब बकवास लगता था। एक शाम दोस्तों के साथ मज़ाक में उसने कहा:
“अरे भूत-वूत कुछ नहीं होता! कल रात मैं उस हवेली में जाऊँगी… अकेली!”
सभी ने उसे मना किया… लेकिन लक्ष्मी जिद पर अड़ी रही।
हवेली का दरवाज़ा खुद-ब-खुद चरमराता हुआ खुल गया… जैसे उसे लक्ष्मी का इंतज़ार हो।
भीतर अंधेरा… धूल… जाले… और दीवारों पर अजीब निशान… जैसे नाखूनों से खरोंचे गए हों।
लक्ष्मी ने टॉर्च जलाया… और एक कोने में उसे एक पुराना आईना दिखा।
आईने में उसने खुद को देखा… लेकिन तभी… उसके पीछे… एक धुंधली परछाई खड़ी दिखी… जो असल में वहाँ नहीं थी।
“क… कौन है?” लक्ष्मी ने कांपती आवाज़ में कहा। जवाब… बस सन्नाटा…
फिर… अचानक… एक औरत की सिसकी सुनाई दी। लक्ष्मी ने पलट कर देखा… वहाँ एक सफेद साड़ी में… उलझे बालों वाली… चेहरा आधा जला हुआ… एक औरत खड़ी थी…
उसकी आँखें… लाल… सूनी… और उसमें गुस्सा… नफ़रत… और भूख थी…
लक्ष्मी चीख कर भागी…
सीढ़ियों से फिसल कर नीचे गिर गई… उसकी टॉर्च कहीं दूर जा गिरी… चारों ओर घना अंधकार…
तभी… उसे अपनी गर्दन पर किसी के ठंडे हाथों का अहसास हुआ… जैसे बर्फ की सिल्ली उस पर रख दी गई हो।
“कहाँ जा रही हो…? अब तो तुम मेरी हो…”
एक फुसफुसाती हुई, मगर बेहद डरावनी आवाज़ उसके कान में आई।
सुबह गाँव वाले लक्ष्मी को ढूंढने निकले…
हवेली के पास खून के निशान थे… और लक्ष्मी की उधड़ी हुई चुन्नी… लेकिन लक्ष्मी खुद… कहीं नहीं थी।
कई दिनों तक तलाश चली… लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला…
और आज भी…
जब रात के समय कोई हवेली के पास से गुजरता है…
तो अक्सर एक लड़की की चीखें… मदद की पुकार…
और उसके पीछे किसी औरत की ठहाके…
सुनाई देती हैं…
और हवेली का आईना… अब उसमें लक्ष्मी की परछाई… हमेशा खड़ी रहती है… मुस्कुराते हुए…
आने वाले अगले शिकार का इंतजार करते हुए…