“खंडहर की छाया: भूतनी की रात”
— ✒️जी.पी डोरिया
—✒️लक्ष्मी जायसवाल

लोग कहते है कि, गांव की बाहर पुरानी सड़क पर तहत खंडर से पड़े रहते उस मकान में देर रात को किसी स्त्री की रो ने खूंखार आवाज आती है । तो, कभी कभी कड़ी धूप में दोपहर के वक्त उस सुमसाम जगह पर पायल की छनछन की आवाज भी आती है । कोई अकेला इंसान कभी वहां से पास तक नहीं हो सकता । कुछ ना कुछ डरावना सा एहसास होता ही होता है वहां पर। गांव वालों का कहना था कि, उस घर में चुडैल का वास है । किसी बुरी आत्मा का निवास है उस घर में।
किसी प्रसंग को लेकर जैमिन और उसके दोस्त मामा के घर, उस गांव में आए थे । रात को डीजे के साथ नाचगाना हो रहा था उत्सव के तहत, तो वो सब लोग नाच रहे थे। प्रसंग को एंजॉय करने में कब रात ढलती गई पता ही नहीं चला । लंच का ब्रेक हुआ । डीजे भी बंध हो गया । घर में से युवा लड़के भर भर के नाश्ता ले आ के, लोगों में बाट रहे थे । और जोर शोर से खाने का मजा ले रहे थे ।
तभी जैमिन बोला, कौशिक… रात ढलती जा रही है । ठंडी हवा भी अच्छी चल रही है । मौसम भी बड़ा सुहाना सा है । चलो ना बाहर एक चक्कर लगा आते है, बाहर जा के शौच कर आते है । कौशिक और जैमिन इधर उधर की बाते बनाते हुए, चलते चलते गांव के बाहर आ गए । वही से वो सड़क शुरू होती थी । सड़क की पास ही में कुछ छोटे छोटे मंदिर बने हुए थे , किसी देव देवस्थान के । और आसपास सब पेड़ पौधे जंगल से बिखरे पड़े थे । ठंडी बहती हुई शीतल हवा, और ढलती हुई रात की एक नीरव शांति । बहुत ही मनोभावक दृश्य था । चारों और बस अंधेरा ही अंधेरा । और झाड़ियों में से अनसुनी कोई चहलपहल की आवाजें आती रहती थी । तभी जैमिन बोला, कौशिक.. यार… गांव में भी कितना सुकून है, है ना । कितनी अच्छी और शांत जगह है ए । बैठो ना यहां थोड़ी देर, डीजे चालू हो तब जाते है उस और ।
दोनों, वहां मंदिर के पास में, एक अच्छी सी जगह देख कर बैठ गए। इधर उधर की, अपने अच्छे अतीत को याद करते हुए, अतीत को लेकर बाते बना रहे थे दोनों । तभी, अचानक से ही मौसम के बदलते… ढलती रात के तले बहती हुई वो शीत हवा और तेजी से बहने लगी । नीचे बिखरे पड़े पत्ते सब उड़ उड़ के बहते हुए पास वाली खाई की और बहने लगे । झाड़ियों में से दूर दूर से कही… कुत्तों की रोने की डरावनी सी आवाज आने लगी । जैसे कि, मौसम का पूरा माहौल ही बदल गया हो । लेकिन, जैमिन और उसका दोस्त, दोनों तो अपनी ही बातों में मशगूल थे । आसपास क्या हो रहा है, उसकी जरा सी भी भनक नि थी उनको ।
तभी, गांव की और गुजरती हुई एक गली से, डर के मारे घबराता हुआ एक ग्यारह साल का लड़का वहां आ के खड़ा रह गया। और बोला, भाई… आप दोनों यहां क्या कर रहे हो । मेरे साथ आ के, जरा उस घर की और से पास होता हुआ वो रास्ता पसार करने में साथ आयेंगे क्या…। मेरे चाचा का घर सड़क की उस और है वहां जाना है मुझे । जैमिन – तो चला जा… डर क्यों रहा है । हम लोग यही पे बैठे हुए है सामने ही । डर मत जा.. चला जा ।
अंधेरे में चीते सी चमकती हुई उसकी बड़ी बड़ी आंखे। तेज हवा के बहकावे से इधर उधर बिखरे हुए उसके घुंघराले बाल । बदन पर फटा टूटा पुराना सा एक सफेद टी शर्ट । हाथ पैर पूरे के पूरे मैले हो चुके थे उसके । जैसे कि वो कोई मिट्टी का काम कर के आया हो । इतनी रात तले, भला उस लड़के को, चाचा के वहां वही सड़क पार कर के क्यों जाना था..! वो तो आ के खड़ा रह गया वहा ।
वो लड़का… थोड़ी दुर जा के डर से कापता हुआ फिर से वापस आ गया । और इतना डर गया था कि, कुछ बोल भी नि पा रहा था । वो, कुछ बताना चाह रहा था, पर मानो जैसे उसने बीच राह में कुछ देख लिया हो, और डर के मारे जान हाथ में आ गई हो । छुन हो गया था । कुछ बताना था उसे, लेकिन बता नहीं पा रहा था । बहुत पूछने के बाद, थोड़ी देर के बाद वो शांत होते हुए बोला –
भूत….!
भूत को देखा भाई मैने ।
लोग सच ही बोल रहे है, ए सड़क के पास में वो जो खंडर सा मकान पड़ा रहता है, उसमें भूत का वास है । मैंने, खुद अपनी आंखों से देखा एक औरत को वहां पर खड़े हुए । काले घने खुले हुए लंबे लंबे बाल । गुलाबी रंग की चमकदार साड़ी, बिजली के ख़ब्मे की रोशनी में चमक रही साड़ी की टिक्कियां । जरी से भरी पड़ी भपकदार साड़ी में एक औरत इतनी रात को सड़क के पास में ही खड़ी है । – इतना कहते ही, फुट फूट के रोने लगा वो लड़का । अब मैं चाचा के घर कैसे जाउगा ।
जैमिन – पूरी कहानी सुनने के बाद । भूत भूत कुछ नहीं होता यार । ए सब बनी बनाई रटी हुई कहानियां होती है । और ऐसी सब कहानी ऐसे खंडर जैसे घरों से ही उभर के आती है । जिसमें आप जैसे लोग मिर्च मसाला डाल के उसे हवा देते हो । चल आ… मुझे दिखा । कहा है वो औरत…? और कैसी दिखती है । वही पर खड़ी है न अभी भी.. की चली गई वहां से ?
कौशिक – जैमिन… यार ठीक कह रहा है वो लड़का । मैने भी सुना है मेरे मामा से की, उस घर में दिन दहाड़े भी कोई नहीं जा सकता । अजीब अजीब सी आवाजें सुनाई देती है वहां पर । और चुडैल का वास है उस घर में । रात के 2 बजने आए है । ऐसे टाइम में ही बुरी शक्तियां जाग्रत होती है । चल आ.. हम, डीजे की और चले जाते है ।
जैमिन – ओ… डरपोक… एक बार जा के देख तो लेने दे । लड़के की बात में दम है या नहीं । या फिर ऐसे ही कह रहा है। जैमिन और उसका दोस्त उस सड़क की और गए । लड़के ने दिखाया – देखो….. वो दूर… खंडर सा मकान रहा । हा, उसके पास में ही उस कोने पर सड़क के बीच देखो । जैमिन ए भूत वेगरा पर यकीन नहीं करता था । लेकिन, जब खुद उसने अपनी आंखों से देखा, तो उसकी आँखें भी फटी की फटी ही रह गई ।
मंदिर से थोड़े दूर, उस मकान के करीब ही एक औरत खड़ी थी। लगभग पांचसो – छेसो मीटर की दूर पर । लंबे लंबे काले घने उसके बाल । बदन पर गुलाबी रंग की टिकी वाली चमकदार साड़ी । और साड़ी में भरी पड़ी जरी तो, बिजली के खंभे की बत्ती से और भी चमक रही थी । पीछे की और मुंह घुमाए खड़ी वो औरत अपने लंबे लंबे बालों का संवार रही थी । इतनी रात को, इन झाड़ियों के बीच, ऊपर से उस डरावने मकान के पास ए औरत । अच्छे अच्छी की पेंट गीली हो जाए देख के ।
दूर दूर से एक कुत्तों का झुंड भी उस औरत को देख देख के जोरो जोरो से भौंक रहा था। इधर उधर दौड़ते हुए, उस औरत को देख देख के दूर दूर से ही भौंके जा रहे थे ।
जैमिन का दोस्त – जैमिन यार…. कुछ बोलना नहीं । खामोश ही रहना । और तू… रोना बंद कर अभी । और जान बचानी है तो चुप चाप निकल लो यहां से । वरना… आगे क्या होगा, वो तो हम लोग नहीं जानते ।
जैमिन – यार… डरपोक बाबू ।
तू बंध करना यार अपना मुंह । पहली बार तो लाइफ में ऐसे आंखों के सामने भूत देखने को मिला है । ठीक से देखने तो दे, आखिर कार होते कैसे है ए भूत । कौशिक – तू ना, मानेगा नहीं । और किसी दिन बुरी तरह से फसवा डेंगा ।
जैमिन ने वही से ही खड़े खड़े आवाज लगाई –
कौन है वहां …?
कोई है क्या….? कौन है वहां ..?
इतनी रात को क्या कर रहा है वहां पर ??
पर, सामने से कोई भी जवाब नहीं मिला ।
वो, औरत वही पे खड़ी हुई अपनी खुली जुल्फे सवार रही थी, गर्दन को झुकाते हुए । साइकोलॉजी से ग्रेजुएट किया जैमिन, इन सब बातों में जरा भी यकीन नहीं रखता था । अब भी उसकी जिज्ञासा वहां पर हकीकत मे कौन है ए जानने की थी । जैमिन – एक काम करो… आप लोग ए ही पर खड़े रहो दोनो । मैं, वह जा के देख के आता हु । की, है कौन वहां पर ।
कौशिक – यार… जानता नहीं है तू उस जगह के बारे में कुछ भी । हर जगह मस्ती अच्छी नहीं । तू चल यहा से । कही, जाने की जरूरत नहीं है तुझे । गर वो पीछे मूड के देखी तो, पतलून भी ठीक से गीली नि हो पाएगी तेरी । चल यहां से….
जैमिन – अरे… रुको तो खरा । जस्ट अभी जा के मै आया । जैमिन फिर से आवाज लगाते हुए, हिम्मत दिखाते हुए उस और आगे बढ़ा , ए कहते हुए की – कौन है वहां…? कौन खड़ा है ..?? वहां पर खड़े जैमिन के दोस्त और उस लड़के की तो, जैमिन की इस हरकत से जान ही हाथ में आ गई थी। जैसे उस लड़के ने, जैमिन की ए हरकत देखते हुए, कसकर कौशिक का हाथ पकड़ लिया ।
धीरे धीरे कर के, आवाज लगाते हुए जैमिन उसके एक दम करीब पहुंच गया । और उस औरत का हाथ पकड़कर, मुंडी इस और घुमाते हुए,…. हाथ ऊपर कर के… घुमा कर जैसे ही एक चाटा उस के मुंह पर मारने जा रहा था कि…. …. वो, औरत इस और घूम आती है, अपने बालों को ठीक करते हुए । जैसी ही वो इस और घूमती है…की…
रात के अंधेरे तले, वीरान झाड़ियों के बीच आखिरकार एक अकेली औरतों क्या कर रही थी वहां ? कौन थी वो औरत ? और इतनी रात को उस डरावने मकान के पास क्यों खड़ी हुई थी ? क्या प्रेत आत्माएं ऐसी ही डरावनी जगह को चुन के वही अपना बसेरा करती है ? हिम्मत दिखाते हुए जैमिन वहां तक पहुंच तो गया…. अब वो औरत इस घूम आती है जैसे ही जैमिन ने उसका चेहरा देखने के लिए उसकी गर्दन की ओर हाथ बढ़ाया…
वो औरत धीरे-धीरे इस ओर घूमी।
जैसे ही उसका चेहरा सामने आया… जैमिन की साँसें अटक गईं।
उसका चेहरा— जैसे किसी ने पिघले हुए मोम में से गढ़ा हो। एक आँख गायब, दूसरी की पुतली सफेद। होंठ नहीं थे—बस एक सीधी कट जैसी लकीर।
चेहरे पर जली हुई त्वचा की बू हवा में तैर गई।
जैमिन कुछ बोलने ही वाला था कि उस औरत ने बिना कुछ कहे, अचानक एक अजीब-सी घरघराहट के साथ हँसना शुरू कर दिया — उसकी हँसी आसपास के सूने जंगलों में गूंजने लगी।
पीछे खड़े कौशिक और वह लड़का, ये दृश्य देख कर सन्न रह गए।
कौशिक चिल्लाया —
“जैमिन!! भाग वहां से!!!”
लेकिन जैमिन जैसे उस औरत की आंखों में बंध गया था।
उसका शरीर जड़ हो गया।
तभी…
उस औरत ने धीरे से अपनी साड़ी की जरी से एक छोटी-सी घंटी निकाली।
जैसे ही उसने वो घंटी हिलाई —
पूरे इलाके में हवा एकदम थम सी गई।
झाड़ियों की सरसराहट बंद।
कुत्तों की भौंकना बंद।
यहां तक कि मंदिर की घंटियों की आवाजें भी जैसे किसी ने रोक दी हों।
और तभी— खंडहर में बनी उस पुरानी हवेली की खिड़कियां अपने आप खुल गईं।
अंदर से किसी ने जोर से चीख मारी।
“कौन लाया है इसे यहां…?!”
जैमिन के कदम अब पीछे हटने लगे।
उसके पैर कांप रहे थे, दिल की धड़कन जैसे कानों से बाहर निकल रही हो।
अचानक… वो औरत ज़मीन से थोड़ी ऊपर उठ गई — जैसे उसके पैर अब धरती से अलग हो गए हों।
वो हवा में तैरने लगी — और जैमिन की तरफ बढ़ने लगी।
अब कौशिक दौड़ा उसकी तरफ — उस लड़के ने मंदिर से थोड़ी मिट्टी उठाकर जैमिन की ओर फेंकी।
वो मिट्टी उसके चेहरे पर गिरी, और जैमिन की जैसे नींद खुल गई।
“भाग जैमिन!!!”
कौशिक चिल्लाया और उसका हाथ पकड़ कर उसे खींचता हुआ दौड़ पड़ा।
तीनों — जैमिन, कौशिक और वो बच्चा — अंधेरे में एक ही दिशा में भागे जा रहे थे।
पीछे से वो हँसी अब और तेज हो गई थी।
जैसे वो औरत उनके पीछे-पीछे उड़ रही हो।
लेकिन तभी… मंदिर की घंटी जोर से बजी।
और पूरा वातावरण एक बार फिर शांत हो गया।