—जी.पी डोरिया
—लक्ष्मी जायसवाल
अक्षय – आदर्श…. आ बैठ जल्दी गाड़ी में ।
पास वाले गांव में एक काम निपटा के आ जाते है । शाम के तकरीबन छे बजने आए थे । आसमान में बादल उमड़ घुमड़ कर रहे थे। बिजली तो ऐसे कड़क रही थी जैसे अभी बारिश आ जागेगी। आंधी तूफान को लेकर हवा इतनी तेज चल रही थी कि, नीचे पड़ा कचरा सब उड़ उड़ कर आसमान को छू रहा था ।
शाम के इस आंधी तूफान भरे माहौल के तहत नहा के फ्रेश हो के आया आदर्श, एक नीम के पेड़ के नीचे खड़ा कॉल कर किसी से बात कर रहा था।
तभी अक्षय, आ के गाड़ी का हॉर्न लगाता है। और आदर्श को गाड़ी में बैठ जाने को कहता है ।
आदर्श गाड़ी में बैठ जाता है।
मौसम के अनुसार मधुर ध्वनि में गाने बज रहे थे गाड़ी में । झाड़ियों के घिरे रस्ते को लांघते हुए गाड़ी गांव के बीचों बीच एक गली में आ के , एक दुकान के करीब खड़ी रहती है। दिन ढल चुका था, सूरज डूबने की तैयारी ही थी। तभी आदर्श के फोन में किसी मैसेज की घंटी बजती है । वो देखता है तो, किसी तांत्रिक का मैसेज था ज्योतिषी को लेकर । तांत्रिक का मैसेज देखते ही आदर्श घबरा जाता है। इसने मुझे मैसेज क्यों किया। उसको भला मेरा क्या काम हो सकता है । वो मैसेज को अनसीन करते हुए फोन पॉकेट में रख देता है।
तभी अक्षय बोलता है । आदर्श, तुम यही दुकान पर खड़े रहो । मैं अभी सामने वाले घर में ए सामान देकर आता हु । आदर्श , हा.. लेकिन जल्द ही आना हा । दिन ढलने वाला है। बिन बताए आया हु घर पे । जल्दी लौटना होगा । गांव की गली । आसपास कई दुकानें थी तरह तरह की। गली चौराहे पर बैठे कई लोग गप्पे लड़ा रहे थे । शाम का वक्त का था गांव की औरते और युवा दूध की बरनी लिए डेरि कि और दूध लेने के लिए पसार हो रहे थे। एक दम शांत और अच्छा मौसम था।
तभी आदर्श के फोन की घंटी बजती है ।
फोन में देखता है वो तो, उसी तांत्रिक का कॉल था । तांत्रिक का कॉल देखते ही वो घबरा जाता है। डर जाता है। आदर्श को तांत्रिक और मेली विद्या सब से बहुत डर लगता था। हड़बड़ाहट में कॉल काटने ही जा रहा था आदर्श की तभी # का बटन दब जाता है उससे । और # का बटन दबते ही, एक बड़ा सा धमाका होता है वहां पर । बड़ा सा धमाका होते ही फोन ब्लास्ट हो जाता है । और फोन में से लगादार काला धुआं निकलने लगता है। देखते ही देखते पूरा मौसम काले धुएं से घिर जाता है । आसपास कुछ दिखता नहीं है। चारों और बस काला धुआं ही धुआं दिखता है। धुआं इतना की आसपास कही कोई भी नजर नी आ रहा था आदर्श को । ना वो लोग, ना ही वो दुकानें और ना ही कुछ भी। बस धुआं ही धुआं नजर आ रहा था । की तभी पैरों के घुंघरू बांधे हुए, हाथ में चिमटा लेकर एक तांत्रिक वहां से पसार होता हुआ दिखता है आदर्श को। आदर्श काले धुएं के बीच, धुंधला धुंधला उस तांत्रिक को देखते ही, डर के मारे वहां से भागता हुआ… दूर भागने लगता है ।
की तभी रस्ते में उसे एक औरत सर पे पानी की गगरिया लिए कुएं से पानी भर कर वापिस लौटती हुई मिलती है । भागते हुए आदर्श उस औरत को ए भी कहता जाता है कि,… ” आगे मत जाना । भाग जाओ… आगे बहुत ही काला धुआं है । कुछ दिखाई नहीं दे रहा आगे । और वो तांत्रिक इस और ही हाथ में चिमटा लिए आ रहा है । ” लेकिन औरत तो बस, घूमटा ताने अपनी ही मस्ती में जा रही थी ।
वो काला धुआं, तांत्रिक और ए सब सिर्फ आदर्श को ही दिखाई दे रहा था। उसके अलावा, वहां पर बैठे सभी लोग को कुछ दिख नि रहा था। वो सब तो अपनी जगह पर बस ऐसे ही शांत बैठे हुए थे। आदर्श को ऐसे दौड़ते हुए भागे जा देख कर वो सब उसी की चर्चा कर रहे थे कि, ए लड़का अचानक ही अपना फोन फेक कर भागा क्यों ?
कुछ ही देर बाद, सारा का सारा धुआं गायब हो गया। पूरा मौसम एकदम साफ सुथरा हो गया। दुकानें और वो सब लोग ऐसे के ऐसी ही वहां बैठे दिखे मिले आदर्श को । ना वहां को धुआं था , और ना ही कोई तांत्रिक ।
लगभग अंधेरा हो गया था अब।
आदर्श के पास पॉकेट में कोई पैसे भी नहीं थे। अचानक हुई ऐसी दुर्घटना से आदर्श काफी डर गया था । बौखला गया था । दिल की धड़कने उसकी तेज हो गई थी । क्या हुआ… कब हुआ… क्यों हुआ.. उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । तभी उसे ख्याल आया कि, वापिस वहां चला जाता हु… कही, अक्षय मुझे छोड़ के वापिस ना चला जाए ।
वो जब डरते, घबराते हुए उस जगह पहुंचा तो, अक्षय अभी तक आया नहीं था काम निपटा के। उसकी गाड़ी भी वही पार्क की हुई पड़ी थी । वो जब वापस लौटा तो, दुकान वाले भाई ने आवाज लगाते हुए उसे पूछा, अरे भाई… कहा भाग गया था तू इतनी तेजी से ? क्या हुआ था ? ए… ले… तुम्हारा फोन। जल चुका है ए फोन तो । शॉट सर्किट हुआ क्या फोन में ?
आदर्श – पता नहीं क्या हुआ ।
अचानक से बड़ा धमाका हुआ फोन में, और तेजी से काला धुआं निकलने लगा फोन से। और देखते ही देखते सब कुछ काले धुएं में बदल गया। आप सब लोग भी नहीं दिखाई दे रहे थे । और वो तांत्रिक अभी तो यहां से निकला था… किस और गया।
तभी अक्षय आया और बोला, – कहा चला गया था तू ? मैं तुझे ही खोजने गया था। जरा वक्त तो देख, कितने बजने आए है ? कहा गुम हो गया था तू ? और ए क्या बहकी बहकी बाते बना रहा है तू ? पागल है क्या ? तुझे तो साथ लाना ही नहीं चाहिए था मुझे, कह कर… गुस्सा करते हुए डांटने लगा आदर्श को अक्षय।
अक्षय – अभी तुझे जैसे जाना हो ऐसे जाना घर ।
मैं नहीं ले जाएगा तुझे अपने संग । मैं तो चला… आना तू । इतना कह कर अक्षय गुस्सा करते हुए गाड़ी लेकर निकल जाता है वहां से।
नो बजने आ गए थे । काफी अंधेरा हो चुका था ।
बाजार भी अब बंध होने लगी थी धीरे धीरे। आदर्श, एक निराशा के साथ चलता हुआ गांव के बाहर वाले रास्ते पर आ गया । ए सोचते हुए कि, कोई गाड़ी मिले तो चला जाता हु घर पर ।
आदर्श, घने अंधेरे तले… गांव के बाहर निकल रहे रस्ते पर एक पीपल के पेड़ के पास खड़ा रहा । मैंन सड़क से कई गाड़िया निकल रही थी । लेकिन, हाथ करने के बावजूद कोई भी गाड़ी खड़ी नहीं रहती थी । वक्त बीतता जा रहा था। आदर्श के घरवाले फोन पे फोन कर रहे थे । लेकिन, आदर्श का फोन ब्लास्ट होने की वजह से बंध हो चुका था । एक निराशा के साथ आदर्श मुंह लटकाए हुए पीपल के पेड़ के पास बैठा था। तभी एक काले रंग की स्कॉर्पियो आई । आदर्श ने हाथ किया, तो वही आ के खड़ी रही। कांच खुला गाड़ी का । आदर्श ने देखा तो, ” वही तांत्रिक हाथ में चिमटा लिए हुए बैठा था गाड़ी में । और खूंखार आवाज तले बोला – कहा जाना है ? आ बैठ जाओ गाड़ी में छोड़ देता हु मै तुम्हे ।
आदर्श कुछ बोले, इससे पहले ही उस तांत्रिक ने किसी भभूति की राख, फूंक मार के आदर्श की और उड़ाते हुए… उसके मुंह पर उड़ा दी । तभी आदर्श देखते ही देखते चक्कर खा के वही पर ढेर हो गया ।
तांत्रिक गाड़ी से नीचे उतर के, आदर्श को गाड़ी में डाले.. इससे पहले ही पेट्रोलिंग के लिए निकली एक पुलिस जिप वहां पर आ के खड़ी रही। पुलिस की जिप को देखते ही, वो तांत्रिक वहां से गाड़ी भगाते हुए भाग गया। एक पुलिस वाला आदर्श के पास उतर गया वही पर… और गाड़ी उस स्कॉर्पियो के पीछे भाग चली ।
तांत्रिक ने तेज रफ्तार से गाड़ी भगाई… और देखते ही देखते ना जाने कहा झाड़ियों में गुम हो गई उसकी गाड़ी पता ही नहीं चला….
पुलिस वाले ने आदर्श को हिलाया-डुलाया। उसकी नब्ज देखी, फिर वॉकी-टॉकी पर सूचना दी—
“संभावित अपहरण का प्रयास… लेकिन वक्त रहते पकड़ में आ गया… संदिग्ध गाड़ी भाग निकली है।”
आदर्श की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसे सिर्फ इतना याद था—काला धुआं, वो तांत्रिक, और फिर चक्कर।
“आप ठीक हैं? ये सब क्या हुआ?”—पुलिस वाले ने पूछा।
आदर्श बोला, “मैं… मैं नहीं जानता। वो तांत्रिक… उसने मुझे फूंका… मेरे फोन से धुआं निकला था… और सबकुछ गायब हो गया था।”
पुलिसवाले ने आश्चर्य से देखा, “तांत्रिक? लेकिन यहां तो कोई नहीं था। बस तुम्हें बेहोश पाया और वो स्कॉर्पियो भागती दिखी।”
अगली सुबह
अस्पताल में होश आने के बाद आदर्श को अपने सपने और हकीकत के बीच फर्क समझ नहीं आ रहा था। घरवालों ने जब फोन जल जाने की बात सुनी, तो उन्होंने उसे डॉक्टर को भी दिखाया।
डॉक्टर ने कुछ टेस्ट के बाद कहा,
“शायद ये कोई मानसिक भ्रम है, लेकिन आपके फोन के ब्लास्ट का कारण तकनीकी नहीं था… जैसे किसी ऊर्जा से फूटा हो।”
आदर्श को शक हुआ—क्या वो सब सच था? क्या तांत्रिक ने वाकई उस पर कुछ किया था?
फोन की राख में राज
आदर्श अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद अपने जल चुके फोन की राख को एक स्थानीय तांत्रिक विशेषज्ञ के पास ले गया, जिसे लोग ‘बाबा नाथ’ कहते थे।
बाबा नाथ ने राख को सूंघा, फिर आँखे बंद करके बोले
“ये कोई साधारण राख नहीं है… यह किसी ‘क्रीया तंत्र’ से निकली है। तुम पर किसी ने दृष्टि डाली है। कोई है जो तुम्हें किसी विशेष कारण से ढूंढ रहा है।”
आदर्श काँप उठा, “क्यों…? मैं तो किसी को जानता भी नहीं।”
बाबा बोले
“तुम्हारे पूर्वजों में से किसी ने कभी किसी तांत्रिक की तपस्या भंग की थी। अब वह आत्मा मुक्त नहीं हो पा रही। शायद वही कारण है।”
रहस्य और गहरा होता गया…
बाबा नाथ ने आदर्श को एक चांदी का लॉकेट दिया जिसमें त्रिशूल बना हुआ था और कहा—
“इस तांत्रिक के पास ‘शब्द-कोड’ है, जो तुम्हारे नाम से जुड़ा है। अगर फिर से कोई # (हैश) कोड या कॉल आता है, तो जवाब मत देना।”
इसी बीच, आदर्श के मोबाइल नंबर पर फिर से एक नया मैसेज आया
“#982: अगला पड़ाव—उस तालाब के पास जहाँ सूर्य अस्त नहीं होता।”
अब आदर्श को समझ आ गया था, ये कोई साधारण डरावना अनुभव नहीं है… ये एक रहस्यमयी यात्रा की शुरुआत है।