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अमावस्या की आत्मा

— जी.पी डोरिया

—लक्ष्मी जायसवाल

रात के तकरीबन डेढ़ बजने आए थे । ढलती हुई रात…. उस खुशनुमा माहौल के तले, अंधेरे से घिरी एक नीरव शांति प्रसरी हुई थी । मध्य रात्रि के उस पहर को, एक युवा धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए रेल की पटरियों को लांघता हुआ पटरी के साथ ही सीधा चला जा रहा था । तीन बजे को ट्रेन आने का समय था।  रंगरूप से गोरा, ऊंचा लंबा कद और काफी खूबसूरत दिखने वाले उस युवा का नाम था आदर्श ।

आदर्श एक मध्यम वर्गीय घराने से आता था । पढ़ा लिखा अच्छा लड़का था । आर्किटेक्चर से स्नातक की डिग्री भी हासिल की हुई थी उसने।  जिंदगी में चल रही परेशानियां और लगातार मिल रही निष्फलता को लेकर जिंदगी से हार मानते हुए रेल की पटरियों पर अपनी जिंदगी का आखिरी मुकाम रखने आया हुआ था । जिंदगी को वही दफन कर देते हुए खुद को खत्म कर देने के इरादे से आया था । आत्महत्या करने के लिए ही इतनी रात तले वो पटरियों की और धीरे धीरे धीरे कदम बढ़ा रहा था। 

ट्रेन आने में अभी काफी देरी थी । दिल में एक डर, मायूसी लिए चलते चलते आदर्श पुराने श्मशान के करीब आ चुका था । चलते हुए काफी थक भी चुका था । इधर उधर नजर डालते हुए उसने देखा कि, श्मशान लगता है पास में । मरने के लिए ए सही जगह है।  इतनी रात तले इस और कोई आता जाता भी नहीं होगा।  यही पर अपना आखिरी मुकाम रखता हु । बीती जिंदगी की गहरी सोच को लिए, परेशान मन के साथ, पटरी के पास ही पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठा हुआ, विचारों में मग्न हुआ कुछ सोच रहा था। 

चारों और अंधेरा ही अंधेरा था । आसपास की झाड़ियों में से आती हुई अजीबो गरीब आवाजे । और तेज तरार बहती हुई हवा । दूर दूर से दिख रही शहर की लाइट की रोशनियां एक अलग ही चित्र खड़ा कर रही थी वहां । दूर दूर शहर को देखते हुए, रंगीन जिंदगी में बारे में सोचते हुए आदर्श ख्यालों में खोए बैठा था वहां ।

की, तभी श्मशान की और से… झाड़ियों के बीच से किसी की पायल की छन छन की आवाज सुनाई देती है।  जैसी कि श्मशान की और से कोई चलता हुआ आ रहा हो । एक पल के लिए तो, श्मशान की और से आती हुई पायल की छन छन सुनके आदर्श के दिल में डर पैठ गया।  लेकिन, फिर उसने सोचा कि, आया तो मरने ही हु मै । फिर चाहे भूत से मरू या ट्रेन के नीचे आ के। अंत में तो मरना ही है । पायल की उस छन छन की आवाज के सूर को कानो में पिरोते हुए वो वही पर बैठा रहा ।

तभी श्मशान के दरवाजे के बाहर एक, झाड़ियों के बीच से एक लड़की आती हुई दिखाई दी उसको । नैन नक्श काजल काले । पाव में पायल, हाथों में लाल रंग की चूड़ियां । सफेद सलवार सूट, और रेशम से लंबे खुले बालों में किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नि लग रही थी वो। छन छन छन पायल छनकाती हुई, खुली हवा को गहरी सास तले खुद में समाती हुई … धीरे धीरे धीरे एक से एक कदम बढ़ती हुई वो आदर्श की और ही आ रही थी। इतनी रात तले भला यहां कौन इतनी खूबसूरत नारी ? और शमशान में से वो क्यों आ रही है ? आदर्श तो उसकी खूबसूरती को देख के, बस उसे देखता ही रह गया ।

स्त्री सौंदर्य भाव था ए । देव, दानव, मानव, यक्ष, सब को अपने बस में कर ले । स्त्री सौंदर्य भाव से भला आज तक कोई बच सका है क्या..! आदर्श, अपने सारे दुख, दर्द, प्रॉब्लम, परेशानियां… यहां तक कि खुद यहां आत्महत्या करने के वास्ते आया है… ए भी भूल कर उसकी खूबसूरती में खो गया । की, तभी अचानक से वो आदर्श के पास आ खड़ी हुई । और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए , कोयल सी मिठी आवाज में बोली –

इतनी रात तले, यहां क्यों बैठे हो तुम ?
क्या… तुम्हे पता नहीं है कि, सामने जो दिख रहा है वो मुक्तिधाम है । लोगो को दफनाया जाता है यहां पर । और तो और इतनी रात तले रेल की पटरियों पर ऐसे अकेले घूमना अच्छी बात नहीं है । बुरी आत्माओं का पहरा होता है ऐसी जगहों पर । यहां पर क्यों बैठे हो ? रात को श्मशान में बुरी आत्मा जागृत होती हुई इधर उधर भटक ही रही होती है ।

आदर्श, गहरी सांस ले के… परेशानी भरी आवाज में । किसी से कुछ फर्क नहीं पड़ता अब मुझे । जिंदगी को खत्म कर देने के इरादे से ही आया हु मै यहां पर । आत्महत्या समझ में आता है ना आपको । अभी ट्रेन आएगी तीन बजे, बस उसमें आखिरी सफर तय करना है मुझे।  जिंदगी से अब कोई मोह नहीं रहा मुझे। नहीं जीना… मर जाना है मुझे । कोई नहीं है यहां मेरा, और मै किसी का नहीं हु। सब के सब मतलबी, स्वार्थी लोग है।  यूं कहे तो सेट नहीं होता मुझे इस दुनिया में ।

वो लड़की – अच्छा ।
ऐसी क्या परेशानी है तुम्हे ? जो मरने पर उतर आए ? चाहो तो मुझे बता सकते हो तुम । शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकू।  सोच लो… एक बार मर गए । फिर, चाह कर भी तुम इस इंसानी शरीर में वापिस नहीं आ पाओगे। 

आदर्श रोते हुए। 
एक छोटा सा सपना था मेरा । जिंदगी में और कोई तनाव नहीं चाहिए मुझे।  ” सपना ” मेरी प्रेयसी थी। उसके साथ घर बसाऊं। और साधारण सी खुशहाल जिंदगी व्यतीत करु। लेकिन, अंततः सपना मुझे धोखा दे के किसी और के साथ भाग गई।  सपना मेरी जान थी । छोटा सा, प्यारा सा परिवार है मेरा । सपना के लिए उनसे भी लड़ झगड़ के सारे रिश्ते नाते बुरी तरह से तोड़ के आ गया मै । घर में मम्मी पापा है।  की जिनको मुझे लेकर बहुत ही उम्मीद थी । एक भांजी है छोटी सी , छे साल की । उसके जन्म के बाद ही वो चल बसी। तब से वो हमारे साथ ही रहती है। छोटा भाई है एक लंपट जो अपनी बुरी आदतों को लेकर बहुत ही परेशान करता रहता है अक्सर घर वाले को सब को । मम्मी पापा के लिए, मै ही जीने की एक आखिरी उम्मीद था । उन्हें भी मै बुरी तरह से बुरा भला बोल के, सपना के खातिर घर छोड़ के आ गया।  सपना तो धोखेबाज निकली।  किसी को लेकर भाग गई। मैं अब घर वापस नहीं जा सकता। ना, ही वो लोग मुझे स्वीकार करेंगे । अब जब घरवालों के बारे में सोचता हु तो….. बहुत ही रोना आता है मुझे । अपने आप से घृणा होती है मुझे।  एक दो लड़की के लिए मै अपना सब कुछ बिखेर के आ गया । कही का नहीं रहा अब मैं।  मर जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है मेरे पास।  जिंदा रह के घड़ी घड़ी इस दर्द को नहीं सह सकता मै । दिल में इस भाव को लिए पल पल नहीं मर सकता मै । इससे अच्छा तो हमेशा के लिए ही मर जाऊ मैं ।

लड़की – गर… मैं फिर से वही खुशियां तुम्हारी जिंदगी में ला दूं । फिर से तुम्हे अपने परिवार से मिला दु । तनाव मुक्त साधारण से जीवन को मुकम्मल कर दु।  तो, क्या तुम फिर से अपनी लाइफ में वापिस चले जाना चाहोगे ?
चलो…. मैं आती हु तुम्हारे साथ । तुम्हारी सपना बन कर । तुम्हे नया जीवन देने के वास्ते । तुम्हारा घर बसाती हु।  क्या तुम मेरे साथ, घर बसाना पसंद करोगे ?

आदर्श – ” मन में लड्डू फूटा, नया केटबरी डेयरी मिल्क। ” आप…. आप आओगे मेरे साथ, मेरी सपना बन कर ? लेकिन क्यों…? क्यों मुझे बचाना चाहते है आप ? क्यों मेरे साथ आना चाहते है आप ? किस लिए ? कोई वजह ?
लड़की – गर… हां, है तो हा बोलो…. वरना… मैं अभी तुम्हारे कोई भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती। 
आदर्श – मुझे कोई दिक्कत नहीं है, गर आप आना चाहे तो । आप मेरे लिए मेरा मुकद्दर की तहत होगे । नया जीवन और हौंसला देने के वास्ते । कल ही ले आओ अपने परिवार को आप, हम बात कर लेते है आपस में ।

लड़की – मेरा कोई परिवार नहीं है। 
ए सब जो दफन हुए पड़े है जमीन में, उनको ले आऊ क्या ? वो चलेंगे…? कह के हंसने लगती है। 
आदर्श – मतलब….! मैं कुछ समझा नहीं। 
लड़की – मैं एक आत्मा हु । और मुझे मर चुके तीन साल हो चुके है । बेमौत मारी गई हु, सो भटक रही हु। 
मैं भी, इतने सालों से प्यार की तलाश में ही, तुमने जैसा विवरण किया, उसी जिंदगी के सपने की उम्मीद को लेकर भटक रही हु । मेरा भी कभी ऐसा ही सपना रह चुका है । जो कि पूरा होने से पहले ही मुझे बेमौत मार दिया गया।  और मै अधूरी इच्छा को लेकर तीन सालों से भटक रही हु। तो, क्या तुम… किसी आत्मा के साथ घर बसाना चाहोगे ?? सोच लो….

आदर्श – थोड़ा सोच के… मुझे कोई दिक्कत नहीं है।  गर, आप साथ आना चाहे तो । मुझे तो बस, अपनी साधारण सी जिंदगी, और परिवार के लिए जीना है।  गर मुझे नया जीवन कुछ इस तरह से ही मिलता है, आगे जीने के लिए… तो मेरी पूरी लाइफ मेरे परिवार को समर्पित होगी ।

लड़की – ठीक है । लेकिन,
मेरी कुछ शर्ते है।  गर तुम निभा पाओ तो ही मै तुम्हारे साथ चल सकती हु ।

देखो…. मैं एक आत्मा हु ।
भटकती हुई आत्मा । एक ऐसी आत्मा जो प्रेत बनकर भटक रही हु । लोगो का खून चूस लेती हु।  अभी जो तुम ए मेरा रंग रूप और स्वरूप देख रहे हो।  वो मेरा वास्तविक स्वरूप नहीं है। ए सब मेरी शैतानी ताकतों की माया है । मेरी ए खूबसूरती, ए गोरा बदन, ए काजल काले नैन नक्श सब कुछ उसी माया से ही बना हुआ है।  मेरा वास्तविक रूप बड़ा ही खूंखार और भयानक है । मेरे वास्तविक स्वरूप को देखते ही, तुम्हारी पेंट गीली हो जाए । इतना खूंखार, भयानक और डरावना सा है।  मैं जो इस रूप में खड़ी हु तुम्हारी समक्ष , वो सिर्फ एक माया के तहत, इंसानी डर को दबे रखने के लिए ही है।  डरना मत, मै तुम्हारे साथ, ऐसे रूप के साथ ही रहूंगी । जिस से की, तुम्हारे परिवार को कोई तकलीफ ना हो ।

लेकिन, अमावस्या की रात….
मैं अपने वास्तविक स्वरूप में आ जाती हु । और मुझे हर हाल में खाने के लिए मास चाहिए ही चाहिए होता है । अमावस्या की रात मेरी खूंखार रूह और भी ताकतवर हो जाती है।  और भी भयानक और डरावनी हो जाती है। उस वक्त मेरे सामने कोई भी आया, मै अपना आपा खो के उसका सारा का सारा खून चूस लूंगी । तो, अमावस्या की रात… तुम्हे मुझे सम्भाल लेना होगा।  तुम्हारी जरा सी भी बेदरकारी तुम्हारी और तुम्हारे पूरे परिवार की जान ले सकती है । अतः मैं हु तो एक आत्मा ही।  और ए मेरी रूह की शैतानी फितरत में है। 

आदर्श – तो, ऐसे में, उस वक्त मैं, तुम्हारे इस भयानक से, खूंखार से स्वरूप से बचने के लिए क्या कर सकता हु ?

लड़की – सब से पहले तो, तुम्हे मेरे साथ किसी ऐसे मकान में रहना होगा जो कि, शहर से बाहर पड़ता हो।  जिस और लोगों का आना जाना कम रहता हो।
अमावस्या की उस रात तुम्हे मेरे लिए पहले से ही, मेरे कमरे में ” मास ” की व्यवस्था कर देनी होगी।  और अंधेरा हो उससे पहले ही, कमरे में ” मास ” ला के रख कर, कमरे को बाहर से लोक कर देना । और दरवाजे के हैंडल पर एक सूत का लाल धागा बांध लेना । और मुझे अकेले छोड़ के चले जाना।  क्यों कि, अमावस्या की उस खौफनाक रात…. जब मैं अपने वास्तविक स्वरूप में आऊंगी तो, कड़ी ही भयानकता के साथ, अपनी शैतानी शक्तियों को पुकारुगी । मेरी चीख इतनी भयानक और डरावनी सी होगी कि, इंसानी रूह कांप जाए।  अपनी शैतानी शक्तियों को लेकर मैं, वास्तविक रूप में आते हुए इंसानी खून के लिए चीखूंगी चिल्लाउगी। इंसानी खून के लिए मेरा पूरा बदन टूटेगा।  मेरी नसे फटने लगेगी। इंसानी खून के वास्ते मै किसी भी हद तक जा सकती हु। और कमरे से बाहर आने के लिए…. खतरनाक कोशिश करूंगी । लेकिन, दरवाजे के बाहर बंधा हुआ वो सूत का लाल धागा मुझे कमरे से बाहर नि आने देगा। मेरी लाख कोशिशों के बावजूद… तुम जरा सा भी रहम दिखा के दरवाजा मत खोलना । वरना…. वही पे दबोच लुंगी में तुम्हे । और साथ में जो होगा सभी को मार डालूंगी । तुम तो मेरा अस्तित्व जान ही गए हो, तो… चुप चाप बाहर बैठे हुए सुबह होने का इंतजार करते रहना । लाख कोशिशों के बावजूद दरवाजा नहीं खुलने पर, तुमने रखे हुए ” मास ” से ही मैं खुद को संतुष्ट कर लूंगी । सुबह, सूरज की पहले किरण पड़ते ही, आ के कमरा खोल लेना । मैं तुम्हे इसी खूबसूरत से रूप में, इसी व्यक्तित के साथ मिलूंगी।

दूसरा…. तुम मुझे कभी भी किसी मांगलिक प्रसंग में मत ले जाना । मैं एक आत्मा हु । मांगलिक प्रसंग को अमंगल करने में ही मुझे मजा आयेगा। मुझे कभी भी मांग में सिंदूर भरने को, या गले में मंगलसूत्र पहनने को मत बोलना । मैं रहूंगी तुम्हारी बीवी के जैसे ही, लेकिन…. हु तो मैं एक आत्मा ही।  और ए मेरी शैतानी शक्तियों के खिलाफ है । गर, ऐसी कोई हरकत हुई तो, मै अपने वास्तविक स्वरूप में आते हुए सबकुछ खत्म कर दूंगी वहां पर । शैतानी शक्तियां बहुत ही बुरी होती है ।

तीसरी,… सब से अहम बात ।
तुम्हारे साथ मैं तुम्हारी बीवी बन कर ही रहूंगी । कही पर भी, किसी काम के लिए मै, कभी भी अपनी कोई शैतानी शक्तियां या, माया का उपयोग नहीं करेगी । इंसानी व्यक्तित्व की भाती, इंसान बन कर ही सब कुछ करूंगी। किसी कार्य में अपनी माया का प्रभाव नहीं डालूंगी ।

मैं तुम्हे प्यार भी दूंगी ।
प्यार का एहसास भी दूंगी । प्यार भरा मीठा आलिंगन भी दूंगी । तुम जब कोई तकलीफ में रहे तो, बीवी की तरह ही प्यार और सांत्वना का हर वो भाव तुम्हे महसूस कराऊंगी जो… इंसानी भाव के तहत तुम्हे चाहिए होगा ।
लेकिन,… ” मुझसे कभी शरीर सुख की चेष्टा मत रखना । ” की, शरीर सुख के उस भाव के तहत मुझे छूने की कोशिश भी मत करना । जिस किस वक्त भी तुमने बहक के भी, मेरे बदन को शरीर सुख के भाव के साथ स्पर्श करने की कोशिश की… मैं तुम्हे वही के वही दबोच के सारा खून चूस जाऊंगी । खत्म कर दूंगी बुरी तरह से तुम्हे । सिर्फ तुम ही नहीं…. घर आने वाले किसी भी शख्स ने उस नजरिए से देखते हुए, मेरे साथ कोई छेड़छाड़ की, तो मै उसी वक्त उसका खात्मा कर दूंगी वहां पर । मैं तुम्हे शरीर सुख कभी नहीं दे पाऊंगी । सिर्फ प्यार और प्यार भरा वो एहसास ही मिलेगा ।
हा, शरीर सुख इंसानी भाव के लिए बहुत ही महत्व रखता है। एक जरूरत है, जानती हु मै । लेकिन, इसके लिए मैं तुम्हे मुक्त करती हु।  तुम चाहे जहां से पाना चाहे शरीर सुख पा सकते हो।  इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

सकल देख के लगता है, बहुत ही भोले और सीधे हो तुम । तो, जो भी गर में देव देवस्थान का पूजा पाठ करते हो तुम, अपने कमरे में अपने तक सीमित रखना । मैं, चाह कर भी उस हद तक नहीं आ पाऊंगी । मैं तुम्हारे लिए दुआ भी करूंगी तो भगवान से नहीं, शैतानी शक्तियों से करुंगी । मैं हु तो एक बुरी आत्मा ही । लेकिन, मेरे जीवित जिंदगी के नेक दिल रहने की वजह से, मुझे कुछ खास शक्तियां प्राप्त है। 

इन शर्तों को तुम गर निभा पाओ… तो ही मै तुम्हारे साथ चल सकती हु।  तुम कहो तो अभी मैं, अपना रूप बदल कर सपना के रूप में आ जाती हु।  तुम्हारी मर्जी। 

आदर्श – सबकुछ सुन के, एक गहरी सोच में से बाहर आते हुए।  नहीं… नहीं… इसी रूप में ठीक हो आप । मुझे कोई दिक्कत नहीं है। 
ठीक है । स्वीकार है मुझे ।
आदर्श – लेकिन ध्यान रहे हा…. तुम इंसानों नि की दुनिया में आने जा रही हो । एक से एक इंसान मिलेगे वहां तुम्हे । सपना की तरह बीच मझधार छोड़ के चले मत जाइयो मुझे । जीने की उम्मीद आपने दिलाई है मुझे, वही बीच मझधार छीन मत लियो।  वरना… फिर से इसी मोड पे आ के खड़ा रह जाऊंगा मैं ।
लड़की – वो सब इंसानों का काम है । मैं इंसान थोड़ी ही हु। आत्मा हु मै तो ।

आदर्श – तो… इस नए सफर के साथ, नया नाम क्या रखूं मैं तुम्हारा ? सपना तो मै तुम्हे कह नहीं सकता । आप बताओ… किस नाम से पुकारु मै तुम्हे। 
लड़की – जो तुम्हे ठीक लगे ।
आदर्श – ठीक है । तो फिर आज से आपका नाम संजना । ठीक है । आज से संजना कह के ही बुलाऊंगा में तुम्हे ।

बातों ही बातों में, कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला ।
संजना – आहा… हा.. हा…. क्या रौनक है दिन की । कितना खुशनुमा दिन लग रहा है । और देखो तो वो सूरज…. पहली किरण के साथ कितना सुनहरा सा लग रहा है।  संजना , आदर्श को कस के गले लगाते हुए… तहे दिल से धन्यवाद आपका । आपकी ही वजह से, कई सालों बाद मैं, ” रात के अंधकार से दूर, दिन का उजाला देख रही हु । फिर से वही रंगीन दुनिया को देख रही हु । ऐसा लग रहा है जैसे , कोई फरिश्ता सा आया मेरे जीवन में और मै नए सिरहाने के साथ अपनी जिंदगी शुरू कर पा रही रही हु।  मेरी अधूरी ख्वाइश पूरी हो रही है ।

संजना की ए खुशी, ए नया उत्साह ने उसके दिल में एक सवाल खड़ा कर दिया था कि, ” समझ में नहीं आ रहा है कि, रात को ए सब हुआ क्या ? नई जिंदगी में इसे दे रहा हु…! या ए मुझे दे रही है ? ” कोई तो राज है इसके पीछे।  जो भी हो, ए ठहरी एक आत्मा । आंख बंद कर के भरोसा नहीं किया जा सकता इस पर । इसकी आंखों की खुशी साफ साफ बता रही है कि, इसने मुझे नहीं… पर मैने इसे मुक्ति दी है ।
आदर्श – जो भी हो । देखा जाएगा ।
डूबते को तिनके का सहारा। 

आदर्श और संजना वापिस शहर में लौट आए ।
कई सालों के बाद, श्मशान से शहर में लौट रही संजना…. संसार का पूरा मजा उठाते हुए शहर को देख रही थी । हर एक चीज को गौर से देख देख खुश हो रही थी।  तीन साल गुजार दिए उस शैतानी ताकतों के साथ, अंधेरे के साथ। अतः कोई फरिश्ता… मुझे अंधेरे की उस  दुनिया से बाहर ले ही आया ।
( संजना, दिल में एक शरारत के भाव के साथ )
ले तो आया…. पर… इतना हेंडसम लड़का मुझे वहां से बाहर ले आएगा , ए तो पता ही नहीं था । आय… हाय… संजना… लेट मिला लेकिन लेटेस्ट मिला ।
( मन में ) माफ करना हा मुझे हा आदर्श, इतनी खूबसूरती बटोर लेने के बावजूद भी मैं तुम्हे कभी शरीर सुख नि दे पाऊंगी।  आत्मा जो हु मै। 

आदर्श – तुरंत ही अपने एक पुराने दोस्त को फोन कॉल करता है।  और उसे किराए पर मकान दिलाए उसका इंतजाम करता है । जैसे कि संजना ने आदर्श से बोला था ठीक ऐसे ही, शहर से दूर कुछ सालों से खाली पड़े रहे एक मकान को दोनों मिल कर किराए पर ले लेते है । शहर से दूर, इतने साल से वो मकान भी इसलिए खाली पड़ा था कि,क्यों कि… उस मकान को लेकर भी एक अफवाह चल रही थी कि, उस मकान में बुरी आत्मा का वास है । जिसके चलते वहां पर कोई रहने नहीं जाता था।  लेकिन, अब तक तो ए सिर्फ अफवाह थी।  जो कि, अब सच होने जा रही थी । आत्मा तो अब उस घर में बसेरा करने जा रही थी। 

पूरा पांच हजार किराया और तीन हजार एडवांस देकर… दोनों के मकान रख लिया । दोनों ने मिल कर कड़ी मेहनत के बाद मकान को अच्छे से धो के, साफ सफाई कर के रहने लायक बना दिया।  बड़ा सा एक दम शांत मकान। की जहां पर जीरो से बोलो तो भी आवाज गूंजती रहे कानो में । शहर से दूर बना हुआ था तो, कुदरत के बीच वहां का नजारा भी अच्छा था।  चारों और खेत… और तरह तरह के पैड पोंधे । बस… शहर की एक किलो मीटर की दूरी पर होगा। 

दोस्त से कुछ पैसे उधार ले के आदर्श, होटल जा के शाम का खाना ले आया । संजना और आदर्श दोनों ने मिल कर बैठ के एक साथ खाना खाया । संजना तो बस आदर्श को देखती ही रहती । घर को देखती । आसपास के खूबसूरत के नजारे को देखती । और मुख पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट ले आती । संजना की मुस्कुराहट देख कर… आदर्श खुश हो जाता ।

संजना एक समझदार बीवी की तरह आदर्श का साथ भी देती । और उसे समझाती भी कि, पहले सब अच्छे से सेट कर लो । फिर हम मम्मी पापा को एक बड़ा सा सरप्राइज़ दे के, खुद उन्हें यहां ले आयेगे। और अपनी छोटी सी परिया से भी तो हमे मिलना है । क्या नाम है उसका ?

आदर्श – इशानी । इशानी नाम है उसका । दूसरी में पढ़ती है वो अभी । मेरे दिल के सब से करीब है वो । छोटी सी है, पर घर में सब की जान है।  मम्मी पापा को लड़ाई करने के बाद मैं बुरा भला बोल रहा था तो, वो बैठी बैठी रो रही थी।  मुझे ए सब सोच के बहुत बुरा लगता है संजना। हमें जल्द से जल्द सब को यहां ले आना है ।

संजना – आदर्श का हाथ, हाथों में लेते हुए ।
हा बाबा… अब सब ठीक हो जाएगा । भरोसा रखो खुद पर । आप नेक दिल इंसान हो । और ऐसे लोगों के साथ कुदरत कभी बुरा नहीं करता । सब ठीक हो जाएगा हा । टेंशन मत करो ।
आज आपका इंटरव्यू है ना। 
जाओ… अच्छे से दे आओ । मैं शाम को आपका इन्तजार करती हु।  और अभी देखो… घर में कितना कुछ बिखरा पड़ा है । सब ठीक भी तो करना है ।
और, इंटरव्यू में चुनाव हो जाते ही मुझे खुश खबरी सुना दे ना। आपके लिए… कुछ आपको पसंदीदा बनाकर रखूंगी ।

अच्छे से इंटरव्यू निपटा लेता है आदर्श ।
और पैंतीस हजार पगार के तहत एक बड़ी कंपनी में जॉब भी पा लेता है । सुबह नहा धो के, फ्रेश हो के, बीवी के हाथ की एक दम कड़क मसाला चाय पी के जॉब पर चला जाता । संजना भी, घड़ी घड़ी कॉल करते हुए आदर्श को परेशान करती रहती।  बिन बातों की बाते बनाती और बातों को लंबी खींचते हुए फोन पर लगी ही रहती । संजना की इस आदत को लेकर आदर्श को कई बार सर की डांट भी सुननी पड़ती।

लेकिन, संजना के प्यार के लिए… आदर्श सब कुछ सह लेने को तैयार था । धीरे धीरे कर के संजना उसकी लाइफ का खूबसूरत सा हिस्सा बन गई।  देखते ही देखते… महीना खत्म होने आया । अच्छे से चल रहा था सब कुछ दोनों के बीच। दोनों एक दूसरे को इतना प्यार करते थे… की जैसे एक दूजे के लिए ही बने हो ।

संजना – आदर्श… मैं क्या कहती हु ।
आप तो सुबह नौकरी पर चले जाते है । सो, मै यहां घर पर बोर हो जाती हु । तो क्यों न हम अब मम्मी पापा, देवरजी और छोटी सी परिया को यहां बुला ले। सारे गिले छींकवे दूर कर के अब सुलह कर ले । वो भी तो वहां तुम्हे याद कर रहे होगे ।
आदर्श – हा.. हा… जरूर क्यों नहीं ।
परसो ही हम घर जा के सब को मिल आते है ।
और वहा पर कुछ दिन रुक के, छुट्टियां है तो इशानी को भी यहां साथ ले आते है ।
संजना – सच्ची में…! ( उत्साहित होते हुए )
नन्हीं परिया को हम यहां रखेंगे…!
तो फिर, परसो क्यों… कल ही चलते है ना ।

आदर्श चाहे कितना भी काम में बिजी ना हो, चाहे कितना भी टेंशन हो… ” अमावस्या ” के दिन को वो कभी नहीं भूलता । वो वक्त को आदर्श अच्छे से याद रखता ।
आदर्श – परसो रखे जनाब..! कल अमावस्या है ।
संजना – नजरे नीची करती हुई खामोश हो जाती है । कुछ भी बोलती नहीं ।

दूसरे दिन आदर्श ने ऑफिस से छुट्टी ले ली।
और शहर में जा के ” मास ” ले आया । और जैसे उस आत्मा ने कहा था, ठीक वैसे ही उसने एक कमरे में ” मास ” को रख दिया।  संजना अंदर कमरे में सोई हुई थी । तभी आदर्श ने बाहर से दरवाजा बंध करते हुए, हैंडल पर लाल सूती का धागा बांध दिया । और खुद… खुर्सी लगाकर बाहर बैठ गया। 

मकान की सारी लाइट्स बंद थी । सिर्फ बाहर वाला ही एक बल्ब जल रहा था । धीरे धीरे कर के दिन ढलता गया । आसमान में अंधेरा छाता गया।  सात से आठ और आठ से नौ बजने आए।  अभी तक कोई सरसराहट सुनाई नहीं दे रही थी।  लेकिन, जैसे ही दस बजने आए की….

जोरो से पवन फूंकना शुरू हुआ । आदर्श जहां बैठा था, ठीक वही उसके सर पर से अचानक से एक चमगादड़ का झुंड उड़ता हुआ झाड़ियों की बीच चला गया।  आसपास के खेतों में से, दूर दूर से कुछ कुत्ते, इस मकान की और ही मुंह रख के जोरो शोर से भौंक रहे थे । लंबी आवाज लगाते हुए डरावना सा माहौल खड़ा कर रहे थे । इसी मकान की और देख देख के कुत्ते भौंक रहे थे ।

की तभी कमरे में से किसी की चीखने की भयानक सी आवाज आती है । आवाज सुनते ही आदर्श की तो रूह कांप जाती है ।  संजना अपने वास्तविक रूप में आते हुए तेज तर्रार चीखे मारने लगती है । पूरा का पूरा जला हुआ बदन। बदन से खून टपक रहा था।  लंबे लंबे काले घुंघराले बाल । लंबे लंबे नाखून । बाहर निकल आई काली जीभ
उल्टे पैर और लंबे लंबे पैरों के नाखून । आंखों में से भी लगातार खून बह रहा था । एक क्रूरता भरी भयानक सी, एक डरावनी आवाज के साथ बोलती है । आदर्श…. मुझे बाहर निकाले । ए नहीं,… मुझे इंसानी खून चाहिए । बाहर निकाले मुझे । और जोरो शोरो से दरवाजा पीटने लगती है । गुस्से से धुंआ पुआ होती हुई वो आत्मा बड़ी ही क्रूरता के साथ रोने लगती है । इधर उधर सब सामान फेंकती हुई… हवा में लहराती हुई । कभी उस खिड़की की और आती, तो कभी उस खिड़की की और आती । बड़ी ही भयानक भयानक आवाजे लगाते हुए, बाहर निकलने के वास्ते हाथ पैर मारती रहती । खिड़कियो से उसे झांक झांक के कुत्ते भी उस और देख देख के भौंके जा रहे थे । भयानक रात के तले पूरी रात वो आत्मा अपनी शैतानी शक्ति लिए चीखती चिल्लाती रही । अपने हाथ पैर मारती रही । उसकी भयानक सी आवाज सुन कर आदर्श की तो सास अटक गई ।

वो बाहर बैठे बैठे सोच रहा था कि, क्या ए वही लड़की है ? जो मेरे साथ रहती है ? लास्ट डेढ़ बजे उसने इतनी क्रूर चीख लगाई,

अपनी डरावनी आवाज के संग की… आदर्श डर के मारे… वही से भागता हुआ, उसे वहां अकेले छोड़ कर शहर में चला गया।  संजना अंदर चीखती रही । चिल्लाती रही । शैतानी शक्तियों को पुकारती रही । कुछ हासिल न होने पर, ” वही मास के टुकड़े खाते हुए उसने खुद को शांत किया । ”

एक होटल में आदर्श ने जैसे तैसे रात काटी।
सुबह जब वो घर आया तो, एक दम सन्नाटा सा छाया हुआ था । घर के बाहर सब बिखरा बिखरा सा पड़ा था । कमरा खोल के अंदर जाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई । तो, उसने बाहर से ही खिड़की के कांच से झांकने की कोशिश की ।
खिड़की से उसने देखा कि, वही खूबसूरत सी, अप्सरा सी संजना वही मार्बल पर ढेर हुई पड़ी थी । चेहरे पर वही चमक । सकल में वही मासूमियत । वही उसके ठंडे हो चुके हाथ पैर।  फुल सी कोमल एक लड़की मार्बल पर पड़ी हुई थी । अब जा के आदर्श में हिम्मत आई कि, अब दरवाजा खोल सकता हु मै ।

आदर्श ने, लाल सूत के धागे को खोलते हुए, हैंडल को खींच के दरवाजा खोला । दरवाजा खुलने की आहट होते ही संजना ने आंखे खोल ली । सामने देखती है तो, आदर्श को खड़ा पाया।  आदर्श को देखते ही वो, उसे गले से लगा लेती है । और फूट फूट के रोने लगती है ।
थोड़ी देर ऐसे ही रोने के बाद, वो बोलती है….

अरे है… याद आया मुझे। 
आज तो मम्मी पापा से मिलने जाना है ना हमे ।
छुट्टी ले ली है ना आज आपने ऑफिस से ?
आदर्श, मासूमियत भरी संजना की आंखों को देखता ही रहता है और बोलता है – हा… बाबा ले ली है छुट्टी मैने । जाओ… जल्दी से तैयार हो जाओ । फिर हम गांव के लिए निकलते है ।

संजना नहा के तौलिया लपेट कर बाहर आती है ।
उसके भीगे हुए बाल, फुल गुलाबी गाल, आंखों की नरमी,उभरता हुआ बदन, चेहरे की एक मासूमियत भरी मुस्कान देख के, आदर्श बस उसको देखता ही रहता है । जी करता है उसे की, अभी जा के कस के गले लगा कर प्यार भरा एक मीठा आलिंगन दु संजना को।  की, तभी रात वाली पूरी घटना उसकी आंखों के सामने आ जाती है । और उसकी दिल की धड़कने तेज हो जाती है । मन ही मन में खुद से बोलता है ” कंट्रोल आदर्श कंट्रोल ”

आदर्श, संजना के ख्यालों में खोया ही होता है कि, तभी संजना आती है । देखो ना ए सब । हर रोज तो ड्रेस पहनती ही हु मै।  आज ससुराल जा रही हु पहली दफा । बताओ ना जी, इनमें से कौनसी साड़ी पहनूं ? ए सिल्क वाली ऑरेंज रंग की साड़ी पहन लू ?
पापा जी के सामने घूमटा तानना पड़ेगा क्या मुझे ..!
उ… हु… मैं तो मॉडर्न बहु हु ।
संजना खुद से ही बड़बड़ाती हुई हंसने लगती है ।

संजना जब अपने कमरे में से तैयार हो के बाहर आती है… आदर्श की तो आंखे फटी की फटी ही रह जाती है । किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही थी ऑरेंज साड़ी में संजना । काजल काले नैन नक्श, कस के बाधा हुआ बालों का जुड़ा, केसरिया रंग की चूड़ियां एवं छोटी सी बिंदी। साड़ी में भी जच रही थी संजना ।

आदर्श, संजना के करीब जाते हुए,
ए साड़ी का पल्लू ठीक करो । और चलो अभी देर हो रही है । दोनों ही एक दूजे पर प्यार लुटाते हुए, शरारत एवं एक दूजे के साथ मस्ती करते हुए गांव आ जाते है ।

शाम का वक्त था। सूरज ढल चुका था । आदर्श के पिताजी घर में बैठे हुए टीवी देख रहे थे।  मम्मी जी रसोई घर में रसोई बना रही थी। और छोटी इशानी नाना  संग बैठ टीवी देख रही थी । तभी आदर्श, जूते उतारते हुए सीधा रसोई घर में जाते हुए…. मां के पल्लू से लपाता हुआ रोने लगता है । छोटी इशानी अचानक ही ऐसे मामा को देख के, खुशी होती हुई बोल उठती है – नाना जी , मामा आ गए । की, तभी इशानी भी अपनी चप्पल उतारती हुई घर में प्रवेश करती है ।

इशानी – नानी मां… नानी मां… कोई और भी आया है साथ में । संजना, पल्लू फहराते हुए, दूर से ही पापा जी को प्रणाम करती है ।
आदर्श की मां – ए कौन है बेटा ?
आदर्श – मां…. बहु है वो आपकी ।
माताजी की आंखों में आंसू आ जाते है बहु को देख कर । और नमी के साथ बोलते है –
पागल लड़के… ऐसे सीधे घर में थोड़ी ही ले आते है नयी बहु को।  बाहर खड़ी रख । अभी मैं पूजा की थाली लेकर आती हु, और बहु की आरती उतारती हु ।
ऐ सुनकर ही संजना डर जाती है । तभी बात को संभाल लेते हुए आदर्श बोलता है । अरे मां…. नए जमाने की मॉडर्न बहु है ए । इन सब में ए नहीं मानती ।

तभी घर का छोटा लड़का दारू का सेवन कर के आता है । और आते ही कटु वचन बोलता है । आया हो तो क्या हुआ… कोई बड़ी जंग जीत के तो नहीं आया ना । तभी उसकी नजर भाभी पर पड़ती है । भाभी की खूबसूरती और हरेभरे बदन को देख कर उसकी हवस से भरी नजर बस उनको देखते ही रह जाती है । और तुरंत ही वो अपनी बात बदल लेता है ।

अरे भाभी जी आप भी आये है ।
भैया आपने शादी कर ली, और बताया तक नहीं ।
कहते हुए, भाभी जी को हवस भरी नजरों के साथ देखता हुआ शराब के नशे लड़खड़ाते हुए प्रणाम करता है । संजना उसकी नियत अच्छी तरह से समझ जाती है । दूर से ही वो प्रणाम कर लेती है ।

संजना और आदर्श तीन दिन रुकते है वहां पर ।
तीनों दिन संजना की जुबान मम्मी पापा बोलते हुए सुख नहीं रही थी। छोटी सी इशानी के साथ खेलती रहती। अच्छे से घर का काम निपटा लेती थी । आदर्श की ऑफिस की छुट्टियां पड़ रही थी तो, फिर उन्होंने वापस शहर जाने का निर्णय लिया । और इशानी को भी कुछ दिनों के लिए अपने साथ ले जाने की बात रखी । और उसे भी साथ ले आए ।

इशानी, पूरे दिन भाभी के साथ खेलती रहती । संजना भी उसकी मां बनकर उसका पूरा ख्याल रखती । उसकी हर एक छोटी छोटी बातों का ख्याल रखते हुए मातृ वात्सल्य भाव के साथ प्रेम देती उसे ।

एक दिन आदर्श ऑफिस चला गया था । की, तभी दोपहर को छोटा भाई दीपक बिन बताए ही शहर आ गया। दीपक को इस तरह अचानक आया देख कर पहले तो संजना डर ही गई । लेकिन, फिर भी दिल में थोड़ी हिम्मत रख के अच्छे से स्वागत किया उसका । संजना को देखा तब से दीपक की हवस से भरी बुरी नजर संजना पर ही थी । संजना ने दीपक की आंखों में, अपने लिए हवस देख ली थी । तो, उसने दीपक को वॉर्न भी किया कि, देवरजी…. भाभी हु मै आपकी । दिमाग में गर कुछ उल्टा सीधा चल रहा हो तो उसे निकल दीजिएगा । बोले – खाने में क्या खायेंगे आप ? मैं अभी बना लेती हु ।
दीपक – जो आप अपने इन हाथों से बनाएंगे, खा लूंगा मैं । कह कर, फिर से वही गंदी नजर के साथ इतराता है ।

संजना रसोई घर में रोटी बना रही थी ।
इशानी आंगन में धूल मिट्टी से खेल रही थी । की तभी, अकेलेपन का फायदा उठाते हुए दीपक किचन में चला जाता है,…. और संजना के कंधे पर हाथ रख देता है । संजना अचानक हुए पराए स्पर्श के डर जाती है । देखती है तो, देवरजी होते है । वो, तुरंत खुद को दूर कर लेती है… और दीपक को मना करते हुए, बाहर चले जाने को कहती है । खुद में हवस लिए आया दीपक… भाभी जी के हरेभरे बदन को देख के, खुद पर कंट्रोल नहीं रख पाता और फिर से भाभी जी की, करीब जाते हुए…. उनकी लचीली कमर पर हाथ रख देता है ।

जैसी ही दीपक संजना की लचीली कमर पर हाथ रखता है कि,…. संजना का स्वरूप बदल जाता है । वो अपने वास्तविक स्वरूप में आ जाती है । और जोरो से भयानक सी, काली चीख लगाते हुए…. डरावनी सी एक भयानक किलकारी करते हुए, गुस्से से लाल पीली हो जाती है । संजना का ए स्वरूप देख के दीपक की तो पेंट गीली हो जाती है । बड़ी ही हसीन और कामुक औरत अचानक ए ऐसी कुरूप कैसे हो गई ?

पूरा जला हुआ बदन।  बदन में से गर्म गर्म खून टपक रहा था। लंबे काले घुंघराले बाल । आंखों की जगह बड़े ही कुरूप गड्ढे थे। और आंखों के खून बह बह कर बाहर आ रहा था । काली जुबान और बड़े बड़े आगे के दो दांत । उल्टे पैर… हाथ पैर दोनों के नाखून लंबे । एक डरावनी सी गर्जना के साथ संजना ने दीपक पर हमला बोल दिया । और कस कर उसे छाती से पकड़ कर देखते ही देखते उसका गला दबोच लिया । और सारा का सारा खून चूस लिया उसका।  इतना ही नहीं, अपनी शैतानी ताकत को लेकर… अपने नाखूनों से उसकी छाती भी फाड़ दी । और अंदर से मास निकाल निकाल कर पाशविक हो के खाने लगी।  देखते ही देखते पूरा का पूरा रसोई घर खून से लथपथ हो गया।  कुछ ही क्षणों में तो, दीपक बुरी तरह से तड़प तड़प के मर गया। 

संजना की, ऐसी भयानक डरावनी चीख सुन कर इशानी भी डर गई।  वो, अंगना में ही खेलती हुई…. मम्मी… कह के जोर से चीखती हुई रो रही थी । इशानी के रोने की आवाज सुनते ही, संजना अपने वास्तविक रूप से बाहर आते हुए…. इशानी के पास दौड़ी गई । और उसे अपने सीने से लगाते हुए, चुप कराते हुए ढेर सारा प्यार करने लगी । इशानी के गालों को चूमा… उसके सर को चूमा… उसे प्यार देते हुए चुप कराया। 

इशानी को, वही आंगन में खेलने का कहते हुए, संजना जल्दी से दौड़ी हुई घर में गई । और आदर्श को फोन कॉल किया।  और फूट फूट के रोने लगी….

रोते हुए संजना ने सिर्फ इतना कहा कि, आप जल्द ही घर आ जाए…. देवरजी आए थे यहां पर…. और उन्हें कुछ हो गया है । खबर सुनते ही आदर्श की तो सास अटक गई । वो बिना सर की इजाजत लिए ही फौरन घर दौड़ा आया । घर आ के देखा तो, खून से लथपथ बुरी तरह से तड़प तड़प के मरा हुआ दीपक रसोई घर में पड़ा था। 

आदर्श को देखते ही, संजना आदर्श के गले लग जाती है। और देवरजी…. कहते हुए फूट फूट के रोने लगती है । संजना इतना फूट फूट के रो रही थी कि, उसके आंसुओं ने आदर्श का पूरा का पूरा कंधा भिगो दिया ।

दीपक को इस तरह पड़ा हुआ देख के, आदर्श सब कुछ समझ गया था कि, यहां क्या हुआ होगा । जैसी कि,… उसने संजना को बोल रखा था कि, उसके अस्तित्व के बारे में वो किसी को पता नहीं चलने देगा । वो कुछ देर खामोश ही रहा । और संजना की और देखता रहा । संजना रोते हुए सिर्फ इतना बोली कि, – इसमें मेरी कोई गलती नहीं है ।

आदर्श – कोई बात नहीं ।
अब तुम रोना बंद कर के, जल्दी से ए खून को यह से पोछा लगा कर साफ कर दो । बाहर इशानी खेल रही है।  देखेगी तो डर जायेगी। तब तक मैं घर फोन कर के बता देता हु ।

संजना पोछा लगा रही होती है,
तभी संजय घर पर कॉल कर के, बड़ी हिम्मत इकठ्ठा करते हुए पापा से बोलता है कि, ” किसी जंगली जानवर ने बड़ी बेरहमी के साथ दीपक पर हमला कर दिया था । और उसमें दीपक की मौत हो गई है । मैं उसे अग्नि संस्कार के लिए घर ले के आ रहा हु। 

खबर सुनते ही, आदर्श के मम्मी पापा बड़े ही सदमे में चले गए… और फूट फूट के रोने लगे । आंसू बहाने लगे । जैसे तैसे आदर्श, गाड़ी कर के शव को घर ले गया।  और उसका अंतिम कार्यक्रम करा के वापिस आने लगा । तभी पापा जी ने सवाल किया – बेटा… बहु और इशानी को नहीं लाया साथ में ?
आदर्श – पापा, वो संजना ऐसा कह रही थी कि, किसी खूंखार जानवर ने देवरजी पर हमला किया तो, मै डर के मारे…. इशानी को लेकर , किसी तरह दोनों की जान बचाकर भाग चली वहां से । और वो अपने पापा के वहां है। वो भी इतनी डर गई है, दीपक के शव और उसकी ऐसी हालत को देख कर की… वो नहीं आ पाई ।

परसो, अमावस्या है… और मुझे जल्द से जल्द शहर लौटना होगा। मैं इशानी को और बहु को ऐसे अकेले नहीं छोड़ सकता । उल्टी सीधी बाते बनाकर…. आदर्श वहां से निकल जाता है ।

जैसी ही वो घर लौटता है, देखता है कि….
इशानी बड़े ही प्यार से मामी की गोद में बैठी हुई खेल रही थी।  और संजना भी, जैसे खुद की अपनी बेटी हो… उस तरह इशानी को खिला रही थी । संजना की आंखों के मातृप्रेम साफ साफ झलक रहा था।  वो, एक ममत्व की भावना लिए, इशानी को अपनी गोद में बिठा कर उसके बाल बना रही थी। 

अमावस्या की रात थी आज,
तो जैसे कि उस आत्मा ने बोल रखा था ।
आदर्श बाजार जा के ” मास ” ले आया । और संजना के कमरे में रख दिया । बाहर एक खुर्शी से लगा कर इशानी को अपने साथ लिए बैठ गया।  दिन ढल गया । अंधेरा भी छा गया।  देखते ही देखते वो घड़ी आ गई, जब संजना अपने वास्तविक स्वरूप में आती है ।

रात के तकरीबन बारह बजने आए थे कि, कमरे से एक खूंखार भयानक सी डरावनी चीख सुनाई दी । इतनी भयानक सी चीख थी कि, आदर्श की तो जान ही हाथ में आ गई । उसने तुरंत ही इशानी के कानो पर हाथ रखते हुए दोनों कान बंध कर लिए । और उसे, सो जाने के लिए कहा ।

संजना कमरे में अपनी शैतानी ताकतों को लिए जोर लगते हुए दहशत मचा रही थी । जोर जोर से दरवाजा पीट रही थी । और भयानक सी क्रूरता भरी आवाज में चीख रही थी ।
– आदर्श… मुझे इंसानी खून एवं मास चाहिए। ए क्या ला के रख दिया है तुमने । आहा…. कोमल से कच्चे किसी छोटी सी जान के खून की बु आ रही है मुझे । क्या छिपा रहा है तू..? उस बच्ची को मेरे हवाले कर दे तु । मैं तुझे छोड़ दूंगी । वरना.. अभी बाहर आ के कच्चा चबा जाऊंगी तुझे । मुझे उस बच्ची का खून पीना है । कच्चा मास चाहिए मुझे ।

खिड़कियां पर हाथ पैर मारती हुई भयानक सा डरावना रूप लिए वो आत्मा कांच पर हाथ मार रही थी। और बच्ची की और देख देख के घुरकीया कर रही थी ।

( खूंखार आवाज में )
आत्मा – मना किया था । मना किया था मुझे । की, ध्यान रहे… हवस की नजरों से देखते हुए, मेरे शरीर से कोई छेड़ छाड़ करने की कोशिश ना करे । लेकिन,… तुम्हारा भाई, मेरे लाख समजाने पर भी ना माना। और वो अपनी जान से हाथ धो बैठा । मेरी कोई गलती नहीं थी उसमें । एक न इक दिन ऐसे ऐसे कर के, मौका पाते ही मैं सबको खत्म कर दूंगी। उ.. म… ए नवजात शिशु का खून। मेरी नसे टूट रही है ,…. उस बच्ची को मेरे हवाले कर दे ।

तभी अचानक से, हवा में लहराता हुआ एक चमगादड़ जोरो से आ के खुदकी के कांच से टकराता है । और कांच में दरारे आ जाती है । ए देखते ही, आदर्श… इशानी को लेकर… भागते हुए शहर में चला जाता है ।

सुबह की सुनहरी किरण पड़ते ही, आदर्श इशानी को लेकर वापस आ जाता है । खिड़की से देखता है तो,…. एक शांत और सुशील लड़की कमरे के अंदर मार्बल पर ढेर हुई पड़ी हुई थी । आदर्श अंदर जा के धीरे धीरे दरवाजा खोलता है । जैसे ही आदर्श और इशानी को देखती है संजना….

दौड़ के जा के इशानी को अपनी गोदी में उठा लेती है ।
इशानी…. मामी जी को छोड़ कर कहा चली गई थी तू । मेरा बच्चा…! कहा चला गया था । कहते हुए, इशानी को गोद में लिए उसके हाथ, पैर, सर, गाल पर बहुत सारा चुम्बन करती है । और इशानी पर ढेर सारा प्यार जताती है ।

कल, गोलगप्पे खाने को बोल रही थी ना तुम। 
मामा जी के ऑफिस चले जाते ही, घर का सारा काम निपटा के बाजार में जायेगे हम , ठीक है मेरा बच्चा। वहां इशानी को जो खाना है वो खिलाएगी मामी । देखो… कैसे घूर घूर के देख रही है मामी को ।

आदर्श, शांत चित्त खड़े हुए संजना के इस बदले हुए रूप को देख रहा था। काफी, गहरी सोच में डूबा हुआ था । सोच की इस हद तक चला गया था वो की, उसने ठान लिया था…. चाहे जो भी हो जाए । आज तो इस आत्मा से सच उगलवा के ही रहना है । अमावस्या की रात इतनी खूंखार… और रात ढलते ही इसका अस्तित्व बदल क्यों जाता है ?
आखिर कार किसने किसको नया जीवन दिया है ?
मैने इस बुरी आत्मा को मुक्त किया है ? या, इसने मुझे नया जीवन दिया है ? माजरा क्या है ए सब ।
काफी सोच विचार करने के बाद, आदर्श तैयार हो के नाश्ता कर के इशानी को संजना के पास छोड़ के ऑफिस चला जाता है ।

शाम को आदर्श जब घर लौटता है तो, मुख पर एक तनाव और महयूसी का भाव देखने को मिलता है । किसी को कुछ बताता नहीं है वो । लेकिन स्त्री हृदय, अपने पति के मुख के हावभाव को देखते ही समझ ले तो है कि, कुछ तो जरूर हुआ है। 

संजना – क्या हुआ ?
आज इतने तनाव में हो ऐसा क्यों लग रहा है ? किसी ने कुछ कहा क्या ? ऑफिस में बॉस ने कुछ बोला ? डांट दिया क्या, किसी बात को लेकर ?
आदर्श – हा,… मुझसे एक गलती हो गई थी तो, सर ने मुझे थोड़ा सा डांट दिया।  जबकि उसमें मेरी तो कोई गलती ही नहीं थी।

पास में ही सो रहे, आदर्श का हाथ अपने हाथों में लेते हुए…. संजना उसका सर अपने छीने पर ले लेती है । और उस के बालों पर प्यार से हाथ फिरते हुए बोलती है। काम में तो गलतियां होती ही रहती है । उसमें इतना तनाव थोड़े ही रखते है।  कहते हुए, आदर्श का हाथ अपने हाथों में लिए हुए… बालों को सहलाते हुए प्यार जता रही थी।  संजना का ए प्यार से भरा भाव देख के, ” मौका ए वारदात ” पर उसने पूछ ही लिया ।
आदर्श है – मेरी प्यारी संजना… गर कुछ पूछा तो क्या मुझे सच जवाब मिलेगा आज ?
संजना – क्यों नहीं…! खुली किताब हु आपके सामने । आपकी ही हु मै । हम दोनों में भला कैसा पर्दा । जो पूछना है पूछो ।
आदर्श – क्या मै जान सकता हु की, उस आत्मा को… जो अभी संजना के स्वरूप में है मेरे साथ । उसको मैने रिहा करवाया उस श्मशान से, की उसने मुझे नया जीवन दिया है ?

संजना – बड़े ही प्यार से, अपना सर आदर्श के छीने पर रख कर… उसकी छाती पर हाथ फिरते हुए। 

सच कहूं तो, आदर्श…
आपने मुझे रिहा किया है उस अंधेरे के कैद खाने से । मैने आपको नहीं।  अपने स्वार्थ को लेकर मैं यहां जुड़ी हुई हूं आपके साथ । लेकिन, ए भी सच है कि, मै एक आत्मा हु । मुझ पर शैतानी शक्तियों का छाया है। उसकी ताकत है, जिसको लेकर मैं कुछ भी कर सकती हु । चाहूं तो अभी सब बिखेर सकती हु । लेकिन, मै ऐसा हरकीज नहीं कर सकती। इंसानी फितरत नहीं है मेरी, मै एक आत्मा हु ।

मैं भी तुम्हारी ही तरह एक नेक दिल इंसान ही थी । शांत और सुशील थी। सादगी के साथ जीने वाली लड़की थी । किसी से कोई बैर भाव कभी नहीं रखती थी ।

कॉलेज के लास्ट एयर में थी मै । हॉस्टल में कुछ हवस से भरे पड़े लड़कों ने, मेरी खूबसूरती को देख मेरी इज्जत को लूटने के लिए हमला बोल दिया मूझ पर । लेकिन, मार्शल आर्ट में प्रथम क्रमांक विजेता रह चुकी थी मै । सो, उन लोगों को मैने बाजी मारने नहीं दी।  सब के सब को पीट दिया अच्छे से।  लेकिन, अचानक ही किसी ने मेरे सर पर पीछे से वार कर दिया। और मैं कुछ कर पाती, उससे पहले ही मेरे मुख पर एसिड डाल दिया गया । मेरा चेहरा पूरा का पूरा जल गया था । पेट्रोल डाल कर उन लोगों ने वहां मुझे जिंदा जला दिया । और बड़ी ही बेरहमी के साथ मार दिया मुझे। 

मेरे भी कुछ अपने सपने थे। 
कुछ इच्छाएं थी । मैं भी पढ़ लिख के, एक अच्छा मुकाम हासिल कर के, तुम्हारी ही तरह किसी शांत जगह पर, तनाव मुक्त जीवन व्याप्त करना चाहती थी । काफी कुछ सोच के रखा था मैंने अपने जीवन के बारे में । बेमौत मिली इस मौत से मेरी सारी ख्वाइश अधूरी रह गई । केस को दबा देते हुए, मुझे श्मशान में दफन कर दिया गया। 

तभी, रात को ग्यारह बजे मै,
एक प्रेत के स्वरूप में, एक आत्मा के रूप में…. खुद के साथ हुई इस घटना को लेकर, जमीन से बाहर आ के फूट फूट के रो रही थी । वहां श्मशान में कोई सुनने वाला नहीं था मुझे । पूरी रात, और दिन तक ऐसे ही रोटी रही मै । ऊपर वाले से शिकायत करती रही… इस घटना को लेकर ।

दूसरी रात तभी, तकरीबन रात को डेढ़ बजे के आसपास हाथ में त्रिशूल धारी किसी दिव्य तेज का निरूपण हुआ मेरे सामने । और एक आवाज लगाई मुझे । मैं उस और मूडी । और रोते हुए उस दिव्य शक्ति से अपनी सारी इच्छाओं को रखने लगी । अधूरी रह गई अपनी इच्छाओं को लेकर गिड़गिड़ाने लगी, भीख मांगने लगी। 

तो, उस दिव्य शक्ति ने मुझे कहा। 
बेमौत मरने के बाद, तुम हो तो शैतान के हवाले ही।  तुम में लाख अच्छाई से थी । एक नेक दिल इंसान थी । तुम्हे फरिश्ते अपने साथ ले आते । लेकिन, मरने के बाद, तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारे क्रोध को लेकर बदले की उस आग ने तुम में तामसिक शक्ति का निरूपण कर दिया।  जिसके चलते तुम शैतानी शक्तियों के हवाले हो गई ।

लेकिन, तुम्हारी अच्छाइयां और नेक दिल के व्यवहार को लेकर मैं तुम्हे कुछ दिव्य शक्तियों प्रदान करता हु । तुम्हारी हर खवास पूरी हो, और जल्द ही तुम्हे मुक्ति मिल जाए।  उसके लिए एक एक मौका प्रदान करता हु ।

एक दिन इसी श्मशान भूमि के पास में, खुद से हारा हुआ कोई ऐसा लड़का आएगा, जो कि खुद का अस्तित्व मिटाने आया होगा यहां। तुम्हारी तरह वह भी पुण्यात्मा नेक दिल रह चुकी होगी । और वो तुम्हे इस अंधेरे की दुनिया से दूर ले जाएगा । उजाले की दुनिया का सहारा बनेगा । और अपनी सारी ख्वाइश, इच्छाएं तुम वहां एक आत्मा के तौर पर परिपूर्ण कर पाओगी । जब तक वो फरिश्ता आए…. तब तक इसी श्मशान में भटकते हुए उसका इंतजार करो तुम ।

तब से मैं इंतजार कर रही थी।
और एक दिन तुम आ ही गए । तुम्हे देख कर, तुम्हारी बाते सुन कर ही मै पहचान गई थी कि, वही फरिश्ता हो तुम। जो मुझे इस अंधकार की दुनिया से बाहर निकाल ने के लिए आए हो ।

हर अमावस्या की रात… ए मेरा बदलता हुआ शैतानी शक्तियों वाला डरावना स्वरूप, उसी तामसिक शक्ति का, शैतानी शक्ति का प्रभाव है । जहां, मै एक शैतानी शक्ति के हवाले होती हु।  और खूंखार प्रेत होती हु। 

आदर्श, मैने आपको नहीं…
लेकिन, आपने मुझे उस अंधकार की दुनिया से मुक्त किया है । जब मेरी इच्छा पूर्ति हो जाएगी, दिल में कोई संशय नहीं रहेगा मै मुक्त हो जाऊंगी जो इस प्रेत योनि से ।

और गर, इन बीच मेरी शर्तों से हटकर तुमने कोई भी हरकत की, तो मैं सब कुछ तहस नहस कर के, सब को मिटा दूंगी।  मेरी शैतानी शक्तियां मुझे ऐसा करने से कभी नहीं रोकेगी ।

इसलिए तो , मैने तुम्हे कहा था कि, ” सम्भाल के रखना मुझे । ” – मै तुम्हे शरीर सुख नहीं दे सकती । पर, दिल में इतना प्यार और इज्जत है तुम्हारे लिए की, ” तुम्हारे इंसानी शरीर की उस जरूरत को देखते हुए, मैने उस बंधन से भी मुक्त कर दिया था तुम्हे की, तुम चाहे वहां शरीर सुख पा सकते हो। मुझे कोई दिक्कत नहीं है।  ”

कह तो दिया मैने, लेकिन तुम्हारा ऐसा करना मुझे अंदर से तोड़ के रख देता।  घुट घूट के रोते रह जाती मै। लेकिन अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाती । क्यों कि, कोई भी स्त्री अपने पुरुष पात्र को किसी और संग ऐसे देख नहीं सकती। बाट नहीं सकती।  मजबूर हु मै ।

संजना की बातों को गौर से सुनते हुए,
उसके लंबे खुले बालों में, प्यार से सहलाते हुए….
जानता हु मै ए सब।  स्त्री पात्र के मन के भाव ।
तभी तो, आज तक किसी को उस नजर से देखा तक नहीं है मैने।  ना ही किसी को छुआ है । जो भी हो… जैसी भी हो… मेरे साथ हो तो तुम मेरी बीवी की तहत । जब तक तुम मेरे साथ हो, मै किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता। 

इतना सुनते ही, संजना आदर्श की छाती से,… अपना सर चिपकाते हुए, उसे अपनी बाहों में लेकर एक गर्म सास छोड़ते हुए, आंसू बहाने लगती है।  तभी आदर्श उसको खुद से दूर कर लेता है । इससे पहले कि वो कंट्रोल से बाहर हो आए, और कुछ हरकत कर दे बहकावे में आ के… वो संजना को खुद से दूर कर देता है । संजना… आदर्श का हाथ थामे रोती रहती है। 

आदर्श, संजना को खुद से दूर कर देता है, पर उसकी आंखों में जो गहराई थी, वो किसी आम स्त्री की नहीं, बल्कि उन दर्दों की परछाई थी जो मौत के बाद भी जिंदा थे।

रात ढलती है…

उस रात आदर्श करवटें बदलता रहा।
कभी इशानी की नींद देखता, कभी संजना के चेहरे पर पसरे उस रहस्य को।
तभी अचानक, आधी रात को दरवाजे पर ज़ोर की दस्तक होती है…
दरवाज़ा खुलता है और सामने खड़ा था — पंडित दयानंद।

आदर्श चौंकता है —
“पंडित जी! आप इतनी रात को?”

पंडित दयानंद (गंभीर स्वर में) –
“माफ करना पुत्र, लेकिन अब और देर नहीं की जा सकती।
संजना जिस आत्मा का नाम है, वह शक्ति के दोहरे प्रभाव में है।
तुमने जो उसके साथ रिश्ता बनाया है, वह अब तुम्हें ही अग्निपरीक्षा में डालेगा।
अगर अगली अमावस्या तक तुमने उसे आत्मिक मुक्ति नहीं दी, तो उसकी आत्मा पूरी तरह से शैतानी शक्तियों में समा जाएगी।
फिर वो कभी भी इंसानी रूप में नहीं लौटेगी।
उसका क्रोध इस बार सिर्फ चेतावनी नहीं देगा… तबाही ला सकता है।”

आदर्श –
“लेकिन कैसे दूं उसे मुक्ति?
वो तो खुद कहती है कि जब उसकी अधूरी इच्छाएं पूरी होंगी, तभी वो मुक्त होगी।
पर कौन सी इच्छा…? कौन सा सपना…?”

पंडित दयानंद –
“ये रहस्य सिर्फ एक ही जगह सुलझ सकता है —
जहाँ से उसने जन्म लिया था,
जहाँ उसकी अस्मिता को कुचला गया,
जहाँ उसकी चीखें दीवारों में दफन हो गईं —
उस हॉस्टल के खंडहर में।”

अगली सुबह…

आदर्श, संजना और इशानी को लेकर निकल पड़ता है उस वीरान जगह की ओर।
संजना शांत है — आंखें झुकी हुई हैं, जैसे कोई कसमसाती हुई आत्मा अपने अतीत की राख कुरेद रही हो।

हॉस्टल की टूटी दीवारें, जले हुए कमरों की बदबू और हर कोने में पसरा सन्नाटा —
ये वही जगह थी, जहाँ संजना के सपनों का जनाज़ा निकला था।

संजना (धीरे से) –
“यहीं… इसी कमरे में उन्होंने मुझे जला दिया था।
मेरी चीखें यहीं गूंजती थीं…
हर रात मेरी आत्मा यहीं बैठकर अपनी अधूरी कहानी दोहराती थी।”

तभी अचानक…

एक कोने से चार साए प्रकट होते हैं —
वही चार लड़के जिनकी वजह से संजना की मौत हुई थी।
लेकिन वो अब भूत नहीं हैं… बल्कि पश्चाताप में सड़ती हुई आत्माएं हैं।

एक आत्मा बोलती है –
“हमें माफ कर दो संजना… हम पशु बन चुके थे।
हमारी आत्मा भी भटक रही है…
हम सबकी मुक्ति तेरे हाथों है।”

संजना –
“तुम्हे माफ कर दूं?
जिसने मेरी रूह को जलाया… उस पर दया करूं?
लेकिन… अगर मेरे माफ करने से तुम मुक्त हो जाओ…
तो शायद मैं भी मुक्त हो सकूं।”

और संजना, कांपते हाथों से एक दीया जलाती है,
चारों आत्माओं के आगे रखती है —
“जाओ… तुम्हारी सज़ा अब ऊपरवाला देगा।
मेरा बदला अब मेरा नहीं रहा।”

चारों आत्माएं उजाले में विलीन हो जाती हैं।

और तभी, संजना का शरीर एक चमकते हुए प्रकाश में परिवर्तित होने लगता है।

संजना (मुस्कराते हुए) –
“आदर्श… अब मैं जा रही हूं।
लेकिन तुम्हारा दिया ये स्नेह और सम्मान…
मेरी आत्मा को युगों तक याद रहेगा।
इशानी को कहना — उसकी मामी उसे अब भी बहुत प्यार करती है।”

आदर्श (आंसुओं में डूबा) –
“संजना… क्या एक बार फिर नहीं मिलोगी?”

संजना की आवाज गूंजती है —

“अगर इस जन्म में न हो सका,
तो अगले जन्म में मामी जरूर बनके आउंगी…
इशानी के लिए, तुम्हारे लिए।
क्योंकि सच्चा प्रेम कभी मरता नहीं… वो बस रूप बदल लेता है।”

प्रकाश गायब हो जाता है।
सन्नाटा गहराता है… पर इस बार डर का नहीं, बल्कि मुक्ति का।

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